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अरविंद केजरीवाल बनाम नजीब जंग, आखिर दिल्ली किसकी?

इंटरनेट डेस्क दिल्ली में सरकार चलाने के सवाल पर अकसर केंद्र व राज्य के बीच जंग जैसी स्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं. अब ऐसी ही जंग उप राज्यपाल नजीब जंग व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच छिडी हुई है. केंद्र शासित प्रदेश और साथ ही राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली का प्रशासनिक ताना-बाना इतना […]

इंटरनेट डेस्क
दिल्ली में सरकार चलाने के सवाल पर अकसर केंद्र व राज्य के बीच जंग जैसी स्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं. अब ऐसी ही जंग उप राज्यपाल नजीब जंग व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच छिडी हुई है. केंद्र शासित प्रदेश और साथ ही राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली का प्रशासनिक ताना-बाना इतना जटिल है कि एक ही पार्टी की केंद्र व राज्य में सरकार होने पर भी तानातानी जैसी स्थितियां बनती रही हैं. याद कीजिए दिल्ली की निर्भया दुष्कर्म कांड के बाद किस तरह मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपनी बेचारगी यह कहते हुए जतायी थी कि दिल्ली पुलिस पर तो उनका नहीं बल्कि केंद्रीय गृह मंत्रालय का नियंत्रण है. उस समय मीडिया में शिंदे बनाम शीला जैसे जुमले में भी उठे थे.
और, जब राज्य में सरकार की केंद्र में शासन कर रही पार्टी की धुर विरोधी पार्टी की हो तो कहना ही क्या! दरअसल, ऐसा प्रशासनिक संघर्ष को हवा देकर राजनीतिक पार्टियां अपने राजनीतिक आधार को भी मजबूत करना चाहती हैं. अरविंद केजरीवाल सरकार की दिल्ली के उप राज्यपाल व केंद्र सरकार से ताजा मुठभेड दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को आंदोलन का स्वरूप देने का भी माध्यम है.
खबर है कि अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है और कहा है कि उन्हें दिल्ली में सरकार चलाने की आजादी दें. उन्होंने मोदी सरकार पर यह भी आरोप पत्र में मढा है कि वह उप राज्यपाल के माध्यम से राज्य में सरकार चलाना चाहती है. इससे पहले कल शाम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिल कर केजरीवाल अपना पक्ष रख चुके हैं. केजरीवाल से पहले कल दिन में उप राज्यपाल नजीब जंग राष्ट्रपति से मिल कर अपना पक्ष रखा था और राज्य में मुख्य सचिव के रूप में शकुंतला गैमलीन की तैनाती सहित अन्य विषयों की जानकारी दी थी. जंग गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिले थे.
राज्य शासन के दो शीर्ष पदों पर बैठे शख्स उप राज्यपाल व मुख्यमंत्री की इस खुली जंग के बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर दिल्ली विधानसभा व दिल्ली सरकार की क्या संवैधानिक स्थिति है.
दिल्ली शासन की संवैधानिक स्थिति
दिल्ली शासन को केंद्र द्वारा प्रतिनियुक्त उप राज्यपाल और निर्वाचित मुख्यमंत्री पूर्णता प्रदान करते हैं. दोनों के अपने संवैधानिक अधिकार और अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व हैं. जैसा की 69वें संविधान संशोधन में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण दिल्ली की स्थिति दूसरे राज्यों से पृथक होगी. ऐसी व्यवस्था है कि पुलिस सहित कई अन्य अधिकार केंद्र सरकार के पास होंगे. इसके पीछे तर्क भी दिये जाते रहे हैं कि यह राष्ट्रीय राजधानी है, जिस कारण इसका घरेलू ही नहीं कूटनीतिक गतिविधयां होती रहती हैं और इस मायने में यह काफी अहम भी है. यहां राष्ट्रीय सरकार बैठती है और तमाम दूसरे देशों के राजकीय अतिथियों का आना-जाना लगा रहता है, ऐसे में उनको प्रभावित करने वाली सेवाओं पर केंद्र का ही हक होना चाहिए. यही कारण है कि दिल्ली के पुलिस प्रमुख राज्य के मुख्यमंत्री से नहीं गृहमंत्री से निर्देशित होते हैं. राज्य में नयी दिल्ली नगर निगम भी है, जिसके इलाके में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि रहते हैं. इस पर भी केंद्र सरकार का अधिकार है.
उपराज्यपाल की भूमिका और सवाल
यूं तो किसी भी राज्य में राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है. दिल्ली की भी यही स्थिति है. पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं प्राप्त होने के कारण और केंद्र का प्रतिनिधि होने के कारण स्वत: ही बहुत सारे वैसे अधिकार जो मंत्री परिषद के पास नहीं होते हैं, वे राज्यपाल में निहित होते हैं. ऐसे में कई बार उनके फैसलों से तनावपूर्ण स्थिति बनती है. ताजा विवाद उप राज्यपाल द्वारा शकुंतला गैमलीन को कार्यवाहक मुख्य सचिव बनाये जाने से शुरू हुआ. इस विवाद पर चर्चित वकील व संविधानविद राजीव धवन ने एक तीन पन्ने का लिगल ओपिनियन जारी किया है. इसमें उन्होंने लिखा है कि यह बडा स्पष्ट है कि उप राज्यपाल ने स्वयं बिना मंत्री परिषद की सलाह के कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर अपने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है. उन्होंने ऐसा कर लोकतंत्र व संविधान को संकट में डाल दिया है.
निर्वाचित मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र
द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरीटेरी ऑफ देहली एक्ट, 1991 व 69वें संविधान संशोधन में इस बात का बडा स्पष्ट प्रावधान है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार जनहित में हर तरह का फैसला लेगा. मंत्री परिषद की सलाह से दिल्ली में शासन चलाया जायेगा. 24 दिसंबर 1987 को दिल्ली में प्रशासनिक तंत्र को पुनर्गठित करने के लिए एक कमेटी बनायी गयी थी. इस कमेटी ने विभिन्न तबकों से विस्तृत चर्चा के बाद अपनी संस्तुतियां दी, जिसका उल्लेख तत्कालीन गृह मंत्री एसबी चहवाण द्वारा संसद में रखे गये उक्त बिल में भी किया गया और कहा गया कि निर्वाचित मंत्री परिषद की सलाह से ही राज्य शासन के लिए फैसले लिये जायेंगे.
केंद्रीय प्रशासन की भूमिका
जैसा की पहले उल्लेख किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण केंद्र का दिल्ली के संबंध में कई अधिकार प्राप्त हैं. गृह मंत्रालय का दिल्ली के शासन में सीधा हस्तक्षेप रहता है. दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती है. उप राज्यपाल भी गृह मंत्रालय से निर्देशित होते हैं.
अब क्या है रास्ता
दिल्ली के लिए किये गये 69वें संविधान संशोधन विधेयक में मंत्री परिषद व उप राज्यपाल की भूमिका का उल्लेख है और यह भी लिखा गया है कि दोनों में अगर विवाद उत्पन्न होता है तो वे राष्ट्रपति के पास जाकर अपना पक्ष रखेंगे और फिर राष्ट्रपति ही उस पूरे मामले में अंतिम फैसला लेंगे. और, फिलहाल नजीब जंग व केजरीवाल यही कर रहे हैं. अब सबकी निगाह इस पूरे मामले में राष्ट्रपति भवन पर टिकी है.

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