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परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम अग्नि तृतीय बैलिस्टिक मिसाइल का प्रायोगिक परीक्षण

बालेश्वर (ओडिशा) : भारत ने आज अपनी परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम अग्नि तृतीय बैलिस्टिक मिसाइल का ओडिशा के तटीय व्हीलर द्वीप से सफल प्रायोगिक परीक्षण किया. रक्षा सूत्रों ने बताया कि स्वदेश में विकसित सतह से सतह पर मार करने वाली अग्नि मिसाइल का व्हीलर द्वीप पर एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) के परिसर […]

बालेश्वर (ओडिशा) : भारत ने आज अपनी परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम अग्नि तृतीय बैलिस्टिक मिसाइल का ओडिशा के तटीय व्हीलर द्वीप से सफल प्रायोगिक परीक्षण किया. रक्षा सूत्रों ने बताया कि स्वदेश में विकसित सतह से सतह पर मार करने वाली अग्नि मिसाइल का व्हीलर द्वीप पर एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) के परिसर चार से सचल प्रक्षेपक द्वारा प्रायोगिक परीक्षण किया गया.

सेना ने यह परीक्षण सुबह 9 बज कर करीब 55 मिनट पर किया. आईटीआर निदेशक एम वी के वी प्रसाद ने बताया ’’भारतीय सेना की रणनीतिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) द्वारा किया गया यह परीक्षण पूरी तरह सफल रहा.’’ परीक्षण के लिए हर तरह का सहयोग रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मुहैया कराया.

डीआरडीओ के एक अधिकारी ने बताया ‘‘यह अग्नि तृतीय श्रृंखला का तीसरा प्रायोगिक परीक्षण था. यह परीक्षण मिसाइल के प्रदर्शन के दोहराव के लिए किया गया.’’ आंकडों के विश्लेषण के लिए आज के परीक्षण के संपूर्ण पथ की निगरानी तट पर स्थापित विभिन्न टेलीमेटरी स्टेशनों, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक प्रणालियों और अत्याधुनिक रडारों तथा प्रभाव बिंदु के समीप खडे नौसेना के पोतों के माध्यम से की गई.

अग्नि तृतीय मिसाइल में दो चरणीय ठोस प्रणोदक प्रणाली है. 17 मीटर लंबी इस मिसाइल का व्यास दो मीटर है और प्रक्षेपण के समय इसका वजन करीब 50 टन है. यह अपने साथ 1.5 टन आयुध ले जा सकती है. सैन्य बलों में शामिल की जा चुकी इस मिसाइल में अत्याधुनिक हाइब्रिड नौवहन, मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रणालियां लगी हैं. डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने बताया कि मिसाइल से संबद्ध इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियां अत्यधिक कंपन, उष्ण एवं ध्वनिक संबंधी प्रभावों के लिए दुरुह हैं.

अग्नि तृतीय का प्रथम विकासात्मक परीक्षण नौ जुलाई 2006 को किया गया था जिसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे. इसके बाद 12 अप्रैल 2007, सात मई 2008, सात फरवरी 2010 को इसके और परीक्षण किए गए. मिसाइल का पहला प्रायोगिक परीक्षण 21 सितंबर 2012 को और अगला प्रायोगिक परीक्षण 23 दिसंबर 2013 को किया गया जो सफल रहा.

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