नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मेडिकल और डेन्टल के स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये जाट छात्रों को अन्य पिछडे वर्गो के तहत आरक्षण का लाभ प्रदान करने के लिये दायर याचिका आज खारिज कर दी.शीर्ष अदालत ने कहा कि इस विषय का पहले ही समाधान किया जा चुका है और अब जाट छात्रों के पक्ष में कोई निहित अधिकार नहीं है. शीर्ष अदालत ने जाटों को अन्य पिछडे वर्गो की केंद्रीय सूची में शामिल करने की संप्रग सरकार की अधिसूचना को 17 मार्च को निरस्त कर दिया था.
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की खंडपीठ ने कहा कि इस अधिसूचना के तहत आवेदनकर्ताओं का कोई अधिकार निहित नहीं है और यह अधिकारी उस रिट याचिका के नतीजे के दायरे में था जिस पर न्यायालय ने 17 मार्च को फैसला कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि इस मामले में कोई राहत नहीं दी जा सकती है.
कुछ जाट छात्रों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने कहा कि पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये अखिल भारतीय काउन्सिलिंग के समय जाट समुदाय अन्य पिछडे वर्गो की केंद्रीय सूची में था क्योंकि उस वक्त तक शीर्ष अदालत का निर्णय नहीं आया था लेकिन अब जब राज्य स्तर की काउन्सिलिंग हो रही है तो जाट समुदाय के छात्र सामान्य वर्ग के दायरे में आ गये हैं.
उन्होंने कहा कि बाद में राज्य स्तर की काउन्सिलिंग में बेहतर कालेजों की चाहत में अखिल भारतीय काउन्सिलिंग का चयन नहीं करने वाले छात्र अब न इधर के रहे और न ही उधर के. उन्होंने कहा कि ये छात्र निर्दोष हैं और वे इस झमेले में फंस गये हैं.
न्यायालय ने कहा कि उसने स्पष्ट कर दिया था कि इस तरह के प्रवेश लंबित याचिका पर फैसले के दायरे में आयेंगे जो अब किया जा चुका है.
इससे पहले, न्यायालय ने इस मसले पर 4 मार्च, 2014 की अधिसूचना निरस्त करते हुये कहा था कि पहले गलती से समाहित करने को आगे समाहित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता और आरक्षण सबसे अधिक जरुरत मंद को ही मिलना चाहिए.