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जानिए उस श्रेया सिंघल को जिनकी एक अपील ने रच दिया इतिहास

नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे अंसवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया. न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि आईटी एक्ट की यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19(1) A का उल्लंघन है, जोकि भारत के हर नागरिक को "भाषण और अभिव्यक्ति […]

नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे अंसवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया. न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि आईटी एक्ट की यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19(1) A का उल्लंघन है, जोकि भारत के हर नागरिक को "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार" देता है. इसका श्रेय 24 वर्षीय कानून की छात्रा श्रेया सिंघल को जाता है, जिन्होंने फेसबुक एवं अन्य सोशल साइट्स पर कमेंट किये जाने पर जेल में डाल दिये जाने की घटना से आहत होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

सु्प्रीम कोर्ट का फैसला आने पर याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कायम रखा है. कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि आईटी एक्ट की धारा 66ए अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है, इस कानून के तहत तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को खत्म किया जाए.

दिल्ली की रहने वाली श्रेया सिंघल ने नवम्बर 2012 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बनी धारा 66ए को संविधान की भावना के विरूद्ध होने के कारण हटाने की बात कही गई.

श्रेया ने दिल्ली के वसंत वैली स्कूल में पढ़ाई की और ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी से एस्ट्रोफिजिक्स की पढ़ाई के लिए वह यूके गई. जुलाई 2012 में वह वापस दिल्ली आई और लॉ की पढ़ाई के लिए आवेदन किया. श्रेया की मां भी एक वकील है. मां से सलाह लेने के बाद एक वकील की मदद से श्रेया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

इस कानून के खत्म होने के बाद श्रेया ने कहा कि भारत के लोगों को इस कानून के खत्म होने से राहत मिलेगी और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता पर किसी तरह की कोई रोक टोक नहीं होगी. अब लोग सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी बात रख सकते हैं. श्रेया का कहना है कि, मैं एक विद्यार्थी हूं, इसलिए अपनी भावनाएं बताना चाहती हूं. अपने विचारों को व्यक्त करना रोजमर्रा का की काम है. अगर विचारों पर रोक लगती रही, तो हमारा समाज मूक हो जाएगा.

यहां एक बात उल्लेखनीय है कि जब मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने इनकी याचिका को देखा तो कहा उन्हें आश्चर्य है कि अब तब इस धारा को किसी और ने चुनौती क्यों नहीं दी.

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