नयी दिल्ली : तानाशाही प्रवृत्ति भारतीय व वैश्विक राजनीति का एक अनिवार्य तत्व बन गयी है. इसके समर्थकों का मानना है कि इससे संगठन नियंत्रित होता है और एटोमिक थ्योरी पर पार्टी काम करती है और सभी उस केंद्रीय शख्स के इर्द-गिर्द मे अपने कार्यो को सही ढंग से करते हैं. इससे लोगों में दिशाभ्रम नहीं होता कि कौन उनका बॉस या नेता है और पार्टी की गतिशीलता बनी रहती है. नेतृत्व को लेकर मैं-मैं का झगड़ा नहीं होता.
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भाजपा-कांग्रेस के कितने पास है केजरीवाल की आम आदमी पार्टी?
नयी दिल्ली : तानाशाही प्रवृत्ति भारतीय व वैश्विक राजनीति का एक अनिवार्य तत्व बन गयी है. इसके समर्थकों का मानना है कि इससे संगठन नियंत्रित होता है और एटोमिक थ्योरी पर पार्टी काम करती है और सभी उस केंद्रीय शख्स के इर्द-गिर्द मे अपने कार्यो को सही ढंग से करते हैं. इससे लोगों में दिशाभ्रम […]
वहीं, इसके अलोचक कहते हैं कि फौरी तौर पर इसका भले लाभ हो पर प्रकरांतर में इससे पार्टी कमजोर होती है और व्यक्ति के आभामंडल में संगठन गौण हो जाता है. भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों में इसके अनेक उदाहरण भी दिये जाते हैं. देश की दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस व भाजपा पर भी समय-समय पर ऐसा दोष मढ़ा गया. यह दोष कभी मीडिया ने, तो कभी विपक्ष ने मढ़ा, जिसकी मतदाताओं ने अपने वोटों से पुष्टि की.
लोकतंत्र में इन्हीं चीजों को बुराई बता कर गठित हुई आम आदमी पार्टी में भी उसके जन्मकाल के बाद से ही ऐसे आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गये. प्रबुद्ध वर्ग में अपनी खास पहचान रखने वाले योगेंद्र यादव पहले फैसले लेने के तौर-तरीकों पर नाराजगी जताते हुए इसके विरुद्ध पत्र लिख चुके हैं. उनके और अरविंद केजरीवाल के सिपहसलार मनीष सिसोदिया के बीच उस समय शब्द युद्ध भी मीडिया में चर्चा में आया था. अब कहा जा रहा है कि योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण ने फिर पार्टी में काम करने के तरीके, निर्णय लेने की प्रक्रिया व नेतृत्व के मुद्दे पर उंगली उठायी है. प्रशांत के पिता व पार्टी के संरक्षक शांति भूषण तो खुले तौर पर मीडिया में केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा दिल्ली चुनाव से पहले खोले हुए हैं.
पार्टी के आंतरिक लोकपाल ने भी नेतृत्व के ही सवाल पर कठघड़े में खड़ा कर दिया. उन्होंने पत्र लिख कर एक शख्स (अरविंद केजरीवाल) के दो पद पर रहने पर सवाल उठाया है. साथ ही पार्टी के अंदर बढ़ी अनुशासनहीनता पर भी चिंता प्रकट की है.
ध्यान रहे कि पूर्व में केजरीवाल को तानाशाह बता कई अहम लोगों ने पार्टी छोड़ दी है. विनोद कुमार बिन्नी, शाजिया इल्मी ऐसे ही नाम हैं. किरण बेदी ने भी केजरीवाल के तौर-तरीकों के कारण ही साथ छोड़ा था. तो, क्या बिन्नी व इल्मी के आरोप सही हैं? आप पार्टी में भी वे एक मात्र सर्वशक्तिमान सत्ता व शक्ति के केंद्र हैं. जैसे कांग्रेस में इंदिरा गांधी व सोनिया गांधी रहे हैं और भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी.
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