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भारतीय मजदूर संघ ने सरकार से मजदूर विरोधी श्रम कानून संशोधनों को वापस लेने की मांग की

नयी दिल्ली: मजदूरों, निम्न मध्यम वर्ग के लोगों , किसानों, ग्रामीणों एवं आदिवासियों के नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से निराश होने का जिक्र करते हुए भारतीय मजदूर संघ ने सरकार से मजदूर विरोधी श्रम कानून संशोधनों को वापस लेने तथा कारपोरेट पक्षपात बंद करने की मांग की है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और […]

नयी दिल्ली: मजदूरों, निम्न मध्यम वर्ग के लोगों , किसानों, ग्रामीणों एवं आदिवासियों के नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से निराश होने का जिक्र करते हुए भारतीय मजदूर संघ ने सरकार से मजदूर विरोधी श्रम कानून संशोधनों को वापस लेने तथा कारपोरेट पक्षपात बंद करने की मांग की है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारु दत्तात्रेय को आज लिखे पत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध मजदूर संघ के महासचिव ब्रजेश उपाध्याय ने तत्काल भारतीय श्रम सम्मेलन बुलाने की मांग भी की.भारतीय मजदूर संघ ने पत्र के साथ बीएमएस की 133वीं राष्ट्रीय कार्यकारणी की 6 से 8 फरवरी तक हुई बैठक में पारित प्रस्ताव की प्रति भी संलग्न की और इस पर उपयुक्त कार्रवाई करने का आग्रह किया.

प्रस्ताव में कहा गया है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कथित भ्रष्टाचार एवं कारपोरेट पक्षपात के कारण लोग उब गए थे और देश में राष्ट्रवादी सरकार चाहते थे. वर्तमान सरकार (भाजपा नीत राजग सरकार) आम लोगों की काफी उम्मीदों के बीच सत्ता में आई. लेकिन वर्तमान सरकार ने भी सत्ता में आने के कुछ ही महीने में मजदूरों,, निम्न मध्यम वर्ग, किसानों, ग्रामीणों एवं आदिवासियों समेम सामाजिक क्षेत्र को निराश कर दिया.

बीएमएस के प्रस्ताव में कहा गया है कि कई मजदूर विरोधी श्रम सुधारों के कारण बीएमएस को सडकों पर आने को मजबूर होना पडा. हाल में कोयला क्षेत्र में हडताल इसका उदाहरण है. श्रम सुधार और आर्थिक सुधार राष्ट्रहित के खिलाफ हैं.बीएमएस ने अपने प्रस्ताव में आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार कारपोरेट क्षेत्र का पक्ष ले रही है और सामाजिक क्षेत्र को नजरंदाज कर रही है. संगठन ने इस संबंध में नीति आयोग के संगठनात्मक ढांचे पर भी निशाना साधा.

भारतीय मजदूर संगठन ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के साथ बीमा कानून में संशोधन की पहल का भी विरोध किया. संगठन ने अपने प्रस्ताव में आरोप लगाया है कि मेक इन इंडिया अच्छा नारा है लेकिन ऐसा लगता है कि इसका मकसद एफडीआई को लोकप्रिय बनाना है.

आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ ने अपने प्रस्ताव में आरोप लगाया है कि सत्ता का गलियारा अमेरिका स्थित एनआरआई सलाहकारों एवं मंत्रियों से भरा हुआ है जो कारपोरेट क्षेत्र के जुडाव रखते हैं. नीति आयोग के उपाध्यक्ष, आरबीआई के गवर्नर और आर्थिक सलाहकार इसके उदाहरण हैं.

बीएमएस ने दावा किया कि इनमें से कई सलाहकार अमेरिका में उस समय वित्तीय संस्थानों के सलाहकार थे जब वह वैश्विक वित्तीय मंदी के दौर में काफी खराब स्थिति में चला गया.भारतीय मजदूर संघ ने आरोप लगाया है कि उसका मत है कि सरकार की श्रम एवं आर्थिक नीतियां पूरी तरह से गलत दिशा में बढ रही हैं.

नये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर निशाना साधते हुए संघ ने कहा कि इसके माध्यम से जमीन मालिकों का अधिकार छीनने का काम किया गया है जिसकी गारंटी 2013 के कानून में थी.

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