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पाकिस्तानी ने दिल से बनाया दिल्ली तक का रास्ता

नयी दिल्ली : पाकिस्तान से हिंदुस्तान तक के लेखन के सफर पर निकले रजा रुमी की राहें उस वक्त और आसान हो गईं, जब उन्हें ‘पड़ोसी मुल्क’ का शहर दिल्ली भी अपने शहर लाहौर जैसा अपना-अपना सा लगा और उन्होंने ‘‘दिल्ली बाय हार्ट : इंप्रैशंस ऑफ ए पाकिस्तानी ट्रैवलर’’ के रुप में अपने तजुर्बे को […]

नयी दिल्ली : पाकिस्तान से हिंदुस्तान तक के लेखन के सफर पर निकले रजा रुमी की राहें उस वक्त और आसान हो गईं, जब उन्हें ‘पड़ोसी मुल्क’ का शहर दिल्ली भी अपने शहर लाहौर जैसा अपना-अपना सा लगा और उन्होंने ‘‘दिल्ली बाय हार्ट : इंप्रैशंस ऑफ ए पाकिस्तानी ट्रैवलर’’ के रुप में अपने तजुर्बे को कलमबंद कर डाला. बेहद नफीस सोच के साथ लेखक ने दिल्ली के अतीत और वर्तमान को शब्दों की मदद से आकार देने की कोशिश की है. यह किताब भारत की उस समग्र तस्वीर में एक बार फिर रंग भरने का काम करेगी, जो 1947 में धुंधली पड़ गई थी.

पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर आयोजित एक समारोह में लेखक ने कहा, ‘‘चूंकि मैं तथाकथित ‘दुश्मन देश’ से आया था, मुङो तथ्यों की सच्चाई को बार बार परखना पड़ा और शब्दों के चयन में जरुरत से ज्यादा चौकन्ना रहना पड़ा.’’ समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात शिक्षाविद् प्रो. मुशीरुल हसन ने की. पाकिस्तान के नौकरशाह से विकास पेशेवर बने रुमी ने सप्ताहांत में अपनी पुस्तक जारी की. किताब पाकिस्तान में धड़ल्ले से बिक रही है.

खचाखच भरे समारोह कक्ष में रुमी ने कहा, ‘‘सभी आतंकवादी मेरी किताब पढ़ रहे हैं.’’ प्रो. हसन ने कुछ सवाल पूछकर रुमी की मुश्किलें बढ़ा दीं, जैसे ‘‘क्या दो देशों का विचार गलत था?, पाकिस्तान में सूफी दरगाहों पर बम क्यों दागे जा रहे हैं?, आपके देश में शियाओं को क्यों मारा जा रहा है?, क्या यह अन्तरआस्था संवाद के लिए मुफीद वक्त है?’’

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