जानें, क्या हैं अरविंद केजरीवाल की बड़ी जीत के साइड इफेक्ट

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 का परिणाम भारतीय राजनीति को नयी दिशा देने वाला साबित हुआ. 70 सदस्यीय विधानसभा में अब तक जो स्थिति बन रही है, उसके आधार पर आम आदमी पार्टी को 67 सीट मिल सकती है. यह प्रचंड जनमत का द्योतक तो है, साथ ही उन सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबक भी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 10, 2015 4:16 PM

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 का परिणाम भारतीय राजनीति को नयी दिशा देने वाला साबित हुआ. 70 सदस्यीय विधानसभा में अब तक जो स्थिति बन रही है, उसके आधार पर आम आदमी पार्टी को 67 सीट मिल सकती है. यह प्रचंड जनमत का द्योतक तो है, साथ ही उन सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबक भी है, जो यह मान बैठती हैं कि जनता उनकी संपत्ति है.

वर्ष 2012 में गठित आम आदमी पार्टी को जिस तरह का समर्थन दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिला है, उससे तानाशाही राजनीति पर लगाम कसेगी और राजनीतिक पार्टियां आम जनता के हक में काम करने के लिए मजबूर होंगी. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह आम जनता से जुटे, वह एक मिसाल है. सबसे बड़ी बात कि अरविंद केजरीवाल ने अपनी पिछली गलतियों से सबक लिया और जनता से सीएम पद से इस्तीफा देने की अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी. अब जबकि अरविंद केजरीवाल पुन: दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं, देश की राजनीति में कई परिवर्तन भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं, जिन्हें अरविंद केजरीवाल की बड़ी जीत का साइट इफेक्ट कहा जा सकता है.आइए जानें उन परिवर्तनों को :-

प्रभात झा देंगे इस्तीफा : दिल्ली भाजपा के प्रभारी और संघ के प्रमुख नेता सुरेश सोनी के करीबी माने जाने वाले प्रभात झा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार की नैतिक जिम्मेदारी ली और वे अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं. गौरतलब है कि प्रभात झा के रिश्ते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ खटास भरे रहे हैं,इसके बाद उन्हें मध्यप्रदेश की राजनीति से अलग करके केंद्र की राजनीति में स्थापित किया गया था. किरण बेदी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद कार्यकर्ताओं ने प्रभात झा के खिलाफ प्रदर्शन किया था और स्थिति धक्का मुक्की तक पहुंच गयी थी.
अजय माकन ने दिया इस्तीफा : कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी समीकरण में राहुल गांधी के काफी करीबी समझे जाने वाले कांग्रेस महासचिव अजय माकन को आखिरी दौर में कांग्रेस के चेहरे के तौर पर पेश किया गया. उनके आने से अमरेंदर सिंह लवली की स्थिति असहज हुई और परिणाम यह हुआ कि चुनाव में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी. माकन का परिवार परंपरागत तौर पर कांग्रेस में गांधी परिवार के नजदीक माना जाता है.
सतीश उपाध्याय ने भी ली हार की नैतिक जिम्मेदारी : भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के करीबी समझे जाने वाले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय दिल्ली में भाजपा के अंदर पूर्वांचल का चेहरा माने जाते रहे हैं. विधानसभा चुनाव में किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने से पहले सतीश उपाध्याय भी मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल थे, लेकिन जब बेदी को आगे किया गया, तो सतीश उपाध्याय ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा और उनके समर्थकों ने पार्टी के इस निर्णय के खिलाफ हंगामा किया था. नेपथ्य से भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई करने वाले सतीश उपाध्याय भाजपा को पूर्वांचल के लोगों का वोट नहीं दिला पाये. जानकारों की मानें, तो पूर्वांचल के लोगों का वोट पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के साथ गया.
अरुण जेटली और अमित शाह होंगे कमजोर : प्रधानमंत्री के साथ मिलकर शाह और जेटली एक-एक करके दिल्ली में भाजपा की विजय सुनिश्चित करने के लिए दावं पर दावं खेलते रहे. किरण बेदी को भाजपा का चेहरा बनाये जाने से लेकर अरविंद केजरीवाल की व्यक्तिगत ईमानदारी को कठघरे में खड़ा करते रहे. मोदी की रैली में उमड़ी भीड़ से अपनी जीत लगभग पक्की मान रहे अमित शाह और अरुण जेटली निश्चित तौर पर इस हार से पार्टी के अंदर कमजोर होंगे. राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी जैसे नेताओं को निश्चित तौर पर पार्टी संसदीय बोर्ड में अब अपनी बात रखने में आसानी होगी. विदित हो कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में ये नेता हाशिये पर थे.

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