नयी दिल्ली : केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने एम्स के एक तकनीकी कर्मचारी के स्थानांतरण आदेश को रद्द करते हुए कहा है कि ‘यह एक ऐसी दंडात्मक कार्रवाई है, जो उसे उसके मौजूदा पद से हटाने के लिए बेवजह का मुद्दा बनाकर की गई है.’ जी जॉर्ज पाराकेन की अध्यक्षता वाली न्यायाधिकरण की पीठ ने एम्स द्वारा पिछले साल जारी किए गए उस आदेश को रद्द कर दिया.
जिसके जरिए तकनीकी अधिकारी (प्रयोगशाला) रामजी राय का स्थानांतरण हरियाणा के फरीदाबाद स्थित बल्लभगढ में समग्र ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा (सीआरएचएस) परियोजना में कर दिया गया था. स्थानांतरण के आदेश को दरकिनार करते हुए पीठ ने कहा, ‘इस मामले में, प्रतिवादियों (एम्स और उसके अधिकारियों) से जो जवाब मिले हैं, उनसे पूरी तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि उसके स्थानांतरण की वजहें न तो जनहित में थीं और न ही वे प्रशासनिक अनिवार्यता थी.’
पीठ ने कहा, ‘एक बेवजह के मुद्दे के आधार पर राय को उनकी नियुक्ति की मौजूदा जगह से हटाना पूरी तरह से एक दंडात्मक कार्रवाई है. प्रतिवादियों की ओर से की गई गडबडी स्पष्ट दिखाई देती है.’ 48 वर्षीय राय ने न्यायाधिकरण को बताया था कि यह स्थानांतरण आदेश उससे निजी द्वेष के आधार पर पारित किया गया. अक्तूबर 2013 में एक स्टिंग ऑपरेशन हुआ था और खुद को बचाने के लिए प्रयोगशाला चिकित्सा संकाय की प्रभारी ने उनके खिलाफ आरोप लगाए.
तब से उन्हें किसी न किसी तरीके से उत्पीडन का शिकार होना पड रहा था. राय ने कहा कि इसके बाद संकाय प्रभारी ने उच्च अधिकारियों पर दबाव डाला और उनका स्थानांतरण सीआरएचएस परियोजना में करवा दिया. आदेश के खिलाफ उनके अभिवेदन पर कोई कार्रवाई न होने पर उन्होंने न्यायाधिकरण से संपर्क किया.
उन्होंने यह भी दावा किया था कि बल्लभगढ स्थित जिस सीआरएचएस परियोजना में उनका स्थानांतरण किया गया है, वहां तकनीकी अधिकारी (प्रयोगशाला) का कोई पद ही नहीं है और इस परियोजना में इससे पहले किसी तकनीकी अधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई है. हालांकि एम्स ने इन आरोपों से इंकार किया और कहा कि संस्थान के कर्मचारी के स्थानांतरण का अधिकार निदेशक के पास है.