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राजनीतिक दलों को आरटीआई से बाहर रखना सही : सिब्बल

नयी दिल्ली : राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए कानून में संशोधन करने के फैसले को सही ठहराते हुए सरकार ने आज कहा कि राजनीतिक दल सार्वजनिक अथारिटी नहीं हैं बल्कि व्यक्तियों का स्वैच्छिक संघ है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आरटीआई कानून में दो संशोधनों का प्रस्ताव मंजूर किया है […]

नयी दिल्ली : राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए कानून में संशोधन करने के फैसले को सही ठहराते हुए सरकार ने आज कहा कि राजनीतिक दल सार्वजनिक अथारिटी नहीं हैं बल्कि व्यक्तियों का स्वैच्छिक संघ है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आरटीआई कानून में दो संशोधनों का प्रस्ताव मंजूर किया है ताकि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस फैसले की काट निकल सके, जिसमें कहा गया कि राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई कानून के दायरे में आना चाहिए.

सरकार के कदम को सही ठहराते हुए कानून मंत्री कपिल सिब्बल नेयहां संवाददाताओं से कहा कि राजनीतिक दल सार्वजनिक अथारिटी नहीं हैं. राजनीतिक दल व्यक्तियों का स्वैच्छिक संघ है, जिसमें लोग शामिल हो सकते हैं या फिर उसे छोड सकते हैं.

हमारा चुनाव होता है. हम अधिकारियों की तरह नियुक्त नहीं होते. कैबिनेट ने आरटीआई कानून की धारा-2 (एच) में संशोधन का प्रस्ताव इस आधार पर मंजूर किया कि राजनीतिक पार्टियां सार्वजनिक अथॉरिटी नहीं हैं इसलिए यह कानून उन पर लागू नहीं होता. सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत ही पंजीकृत और मान्यता प्राप्त होती हैं.

सिब्बल ने कहा कि यदि राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाया गया तो वे काम नहीं कर सकेंगे.कानून मंत्री ने कहा कि यदि राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाया गया तो उनके पास ऐसे आवेदनों की भरमार हो जाएगी, जिनमें उम्मीदवार के चयन के बारे में पूछा जाएगा.

पूछा जाएगा कि कोर समूह या राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में क्या हुआ. पूछा जाएगा कि घोषणापत्र में किये गये वायदे को पूरा क्यों नहीं किया गया.सिब्बल ने कहा कि सूचना आयुक्तों ने कहा है कि हम प्राधिकारी हैं क्योंकि हमें काफी वित्तपोषण मिलता है. सभी राजनीतिक दलों ने इस बात को गलत बताया है. हम आयोग का सम्मान करते हैं लेकिन हमें चिंता भी है.

उन्होंने स्वीकार किया कि राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए और कदम उठाने की आवश्यकता है लेकिन संकेत दिया कि ऐसा आरटीआई (सूचना का अधिकार) के जरिये नहीं किया जा सकता.

यह पूछने पर कि उनकी सरकार केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले के खिलाफ अदालत क्यों नहीं गयी, उसने कानून में संशोधन का रास्ता क्यों चुना, सिब्बल ने कहा कि सीआईसी का आदेश चूंकि कार्यान्वयन में है इसलिए तत्काल कदम उठाने की जरुरत थी इसीलिए सीआईसी के आदेश की काट निकालने के लिए सरकार विधेयक लाने का इरादा कर रही है.

सरकार ने राहत पाने के लिए उच्च न्यायालय में जाने का विकल्प खुला रखा है. सीआईसी के आदेशों पर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है.

सिब्बल ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29 (बी) के तहत राजनीतिक दल दान ले सकते हैं. धारा 29-सी के तहत राजनीतिक दल चुनाव आयोग को अपने दान के बारे में जानकारी देते हैं और 75-ए के तहत आयोग को सभी संपत्तियों और देनदारियों का ब्यौरा देते हैं.

बीस हजार रुपये से कम के योगदान का ब्यौरा आयोग को नहीं देने के प्रावधान के बारे में पूछने पर सिब्बल ने कहा कि नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी राजनीतिक दल से निपटने के लिए कानून है.

सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाली और बहुत अच्छी आर्थिक स्थिति नहीं रखने वाली जनता से मिलने वाले छोटे योगदान की सराहना होनी चाहिए.

सरकार हालांकि इस सवाल से बची कि 20 हजार रुपये से कम योगदान करने वालों की पहचान को साझा क्यों न किया जाए.तिवारी ने कहा कि चुनाव आयोग राजनीतिक व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए समय समय पर कदम उठाता है.

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