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दूर-दराज के कार्यकर्ताओं से वाजपेयी जी का रहता था सीधा संबंध
रमाकांत पाण्डेय वरिष्ठ पत्रकार व सामान के पूर्व दिल्ली ब्यूरो चीफ पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जिन्हें भारतरत्न सम्मान से नवाजा गया है, वास्तव में ऐसे व्यक्तित्व के धनी शख्स हैं, जिसमें सहजता, सरलता के साथ ऐसी मनोविनोद की शैली थी कि पहली बार मिलने वाले व्यक्ति को भी उनसे परेशानी नहीं होती थी. […]
रमाकांत पाण्डेय
वरिष्ठ पत्रकार व सामान के पूर्व दिल्ली ब्यूरो चीफ
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जिन्हें भारतरत्न सम्मान से नवाजा गया है, वास्तव में ऐसे व्यक्तित्व के धनी शख्स हैं, जिसमें सहजता, सरलता के साथ ऐसी मनोविनोद की शैली थी कि पहली बार मिलने वाले व्यक्ति को भी उनसे परेशानी नहीं होती थी. उनके इसी व्यवहार के चलते उनसे संबंध बहुत जल्दी सहज हो जाते थे. उनके संपर्क में आने के साथ ही उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की परतें खुलने लगती थीं और आपको यह सोचने पर मजबूर कर देती थी कि आखिर इस व्यक्ति को दुनिया का कितना गहरा अनुभव है.
मेरा अटल जी से परिचय शायद वर्ष 1990 में सामना का दिल्ली ब्यूरो चीफ नियुक्त होने पर हुआ. खबरों के सिलसिले में उनसे मिलने का सिलिसला शुरू हुआ था लेकिन थोड़े ही दिनों में अटल जी मुङो नाम की जगह सामना महाराज के संबोधन से बुलाने लगे. मुङो देखते ही कहते आइये-आइये सामना महाराज मैं आपका आमना-सामना नहीं कर सकता. लेकिन इस हंसी मजाक के बाद वे खुल जाते और खुल कर बोलते, वैसे तो सामना का संवाददाता होने के कारण मुङो शिवसेना प्रमुख स्वर्गीय श्री बाला साहेब ठाकरे व अटल जी के बीच कभी-कभी संवादों के आदान-प्रदान का माध्यम बनना पड़ता था लेकिन इस कारण मुङो अटल जी के बहु आयामी व्यक्तित्व को बहुत निकट से जानने का मौका मिला. वैसे तो अटल जी के साथ के दिनों के अनिगनत संस्मरण हैं, लेकिन यहां एकाध ऐसे संस्मरण जरूर रखना चाहता हूं, जिससे कि पता चलता है कि अटल जी का देश के दूर-दराज में रहने वाले कार्यकर्ताओं से कैसा सीधा संबंध रहता था और उन्हें इस तरह से देश के दूर-दराज के इलाकों की सारी खबरें मिलती रहती थी.
यह घटना वर्ष 1996 के दिसंबर की है. उस वर्ष दिसंबर जनवरी में लगभग एक महीने तक लगातार बरसात हुई थी. अटल जी उस समय पहली बार 13 दिन के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस्तीफा दे चुके थे और अपने तीनमूर्ती लेन वाले आवास में रह रहे थे. मुङो उनसे थोड़े-थोड़े दिनों में मिलने जाना पड़ता था. उस दिन उनके पास पहुंचा तो अटल जी अपने कमरे में चिट्ठियों का ढेर लगाये एक- एक करके पढ रहे थे. मुङो देखते ही वे एक चिट्ठी को मुझसे कुछ कहे बिना जोर-जोर से सुनाने लगे बहुत बरसात हुई है, पत्थर गिरे हैं, खपरैल टूट गयी हैं, खेतों में धान जम आया है बड़ा नुकसान हुआ है. इतना पढ़ने के बाद अटल जी ने मुझसे पूछा कुछ समझ में आया? मैंने कहा हां बहुत बरसात हुई है नुकसान हुआ है. उन्होंने फिर प्रश्न किया जानते हो बेमौसम बरसात क्यों हो रही है? मैं चुप रहा. अटल जी ने उत्तर दिया यह ग्लोबल वार्मिंग है ग्लोबल वार्मिंग. प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ हो रही है उसका परिणाम यही होगा कि सर्दी में बरसात, गर्मी में सर्दी, और बरसात में गर्मी. वास्तव में अटल जी का अपने कार्यकर्ताओं से सीधा संबंध रहता था इसी कारण वे देश के दूरस्थ इलाकों की छोटी से छोटी समस्याओं से परिचित थे.
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