नयी दिल्लीः सरबजीत का केस गलत पहचान की मिसाल है. एफआईआर ही नहीं चार्जशीट में भी सरबजीत का नहीं बल्कि मंजीत सिंह का नाम है.
परिवार और भारत की बड़ी हस्तियों को सरबजीत ने जो चिट्ठियां लिखीं उसमें भी उसने बार-बार लिखा है कि उसे मंजीत के किए की सजा मिली. सरबजीत को बेगुनाह साबित करने के लिए उसके कुछ मददगारों ने सबूतों के साथ उस चेहरे का खुलासा किया, जिसके बारे में दावा है कि वो ही असली मंजीत सिंह है. सवाल है कि दोनों मुल्कों की सरकारों ने इस हकीकत तक पहुंचने की कोशिश क्यों नहीं की.
सरबजीत अब पहचान का मोहताज नहीं. उसकी बदकिस्मत कहानी ने ही उसे मशहूर कर दिया. सरबजीत की बदौलत इसी कहानी ने दूसरी तस्वीर में दिख रहा ये चेहरा भी सुर्खियों में आ गया. सरबजीत के वकील अवैस शेख की लिखी किताब सरबजीत सिंह-द केस ऑफ मिस्टेकेन आईडेंटिटी का दावा है कि तस्वीर में दिख रहा यही शख्स मंजीत सिंह है. ओवैस शेख का आरोप है कि इसी शख्स के किए की सजा दरअसल उसके मुवक्किल सरबजीत ने भोगी.
दावों पर यकीन करें तो मंजीत नाम का ये शख्स मूल रूप से भारत के जालंधर के पास नकोदर का बाशिंदा है लेकिन इस शख्स ने कई नाम, किरदार और पासपोर्ट बदले. कई मुल्कों की यात्राएं कीं. इसके खुफिया एजेंसियों और आतंकी गुटों से रिश्तों के आरोप भी उछले. इसने भारत, पाकिस्तान और कनाडा में अलग-अलग वक्त पर तीन शादियां तक कीं. कहा जा रहा है कि उसी के शातिरपने के चलते सरबजीत की जिंदगी सलाखों के पीछे और आखिर में अस्पताल के बिस्तर पर नीम बेहोशी में बीत गई. सरबजीत के वकील ओवैस का दावा है कि सरबजीत को जिस धमाके की सजा मिली, उस धमाके के दिन मंजीत पाकिस्तान के कराची में था, धमाके के बाद वो इंग्लैंड भाग गया और बाद में वहां से कनाडा.
ओवैस शेख की किताब के मुताबिक 20 मई 2008 को भारतीय नागरिक मंजीत सिंह को कनाडा पुलिस ने डिपोर्ट कर दिया, उसे कब और कहां भेजा गया और वो अब कहां है इसकी जानकारी फिलहाल किसी के पास नहीं है. लेकिन इसमें कम ही शक है कि असली मंजीत की गिरफ्तारी हमारे सरबजीत की बेगुनाही का सबूत बन सकती थी. उसे उस जुर्म के इल्जाम से रिहाई मिल जाती, जेल की कैद से आजादी मिल जाती, अपने मुल्क की खुशबू, अपने अपनों का साथ मिल जाता तो, अपनी दोनों बेटियों को अपनी आंखों के आगे वो बड़ा होता देख पाता, एक पिता और एक शौहर की जिम्मेदारी निभा पाता, लेकिन शायद उसके नसीब में तो जेल के वही अंधेरे, वही जिल्लत, वही दर्द और वैसी मौत ही बदी थी.
सरबजीत लगातार अपनी बेगुनाही का दावा करता रहा है. लेकिन पाकिस्तान में किसी ने उसकी नहीं सुनी सरबजीत का कहना था कि लाहौर धमाकों में उसका नहीं बल्कि मंजीत सिंह नाम के शख्स का हाथ है. मंजीत कहा हैं इस वक्त ये किसी को नहीं पता. लेकिन सरबजीत की मौत ने एक बार फिर ये सवाल उठा दिया है क्या वो किसी साजिश का शिकार हुआ. उसे जबरन गुनहगार ठहराया गया.
इस इकबाल-ए-जुर्म को पाकिस्तान सरबजीत के खिलाफ सबूत बना कर पेश करता है, लेकिन ये सबूत सरबजीत को गुनहगार ठहराने की साजिश की छोटी सी कड़ी भर है. पाकिस्तान के झूठ और सच में कितना फर्क है, ये सरबजीत के खिलाफ लाहौर के गाजियाबाद थाने की एफआईआर नंबर -91 में दर्ज है. इसमें सरबजीत ने अपने ऊपर लगे हर इल्जाम का खंडन किया था. तफ्तीश में उससे पूछा गया कि क्या ये सही नही है कि तुम्हें भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने ट्रेनिंग दी.
सरबजीत ने जवाब दिया- नहीं.
अगला सवाल हुआ, क्या तुम्हें पाकिस्तानी पहचान पत्र दिए गए.
जवाब मिला- नहीं, सही ये है कि इन्हें मेजर अब्बास ने तैयार किया जो ये केस देख रहे हैं.
फिर सवाल हुआ- क्या 28 जुलाई 1990 को तुमने ही लाहौर के जीटीएस बस अड्डे पर खड़ी बस में बम रखा.
सरबजीत ने जवाब दिया- नहीं.
अगला सवाल हुआ- फिर तुम्हारे ऊपर ये केस क्यों है.
सरबजीत ने जवाब दिया- सही ये है कि 31 अगस्त 1990 को इस सिलसिले में मंजीत सिंह गिरफ्तार हुआ था, लेकिन उसे फौज के कहने पर छोड़ दिया गया और उसकी जगह मुझे मुलजिम बना दिया गया. अब मंजीत सिंह का चेहरा भी बेनकाब हो चुका है. सरबजीत के वकील अवैस शेख की किताब का दावा है कि धमाके खालिस्तानी आतंकियों से रिश्ते रखने वाले भारतीय नागरिक मंजीत ने किए थे. इसलिए शक मजबूत हो जाता है कि मंजीत को बचाने के लिए सरबजीत को फंसा दिया गया.