‘बचपन बचाओ आंदोलन ‘ (बीबीए) नामक एनजीओ चलाने वाले कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद जरूरी हो जाता है कि सिर्फ पुरस्कार की ही चर्चा ना की जाए बल्कि उनके संघर्ष और कामों पर भी चर्चा की जाए.
1954 में जन्मे सत्यार्थी से जब पूछा गया कि आपको यह पुरस्कार मिलने के बाद कैसा लग रहा है तो उनका सीधा सा जबाव था जैसा आप लोगों को लग रहा है. उनके इस बयान से झलकता है कि उन्होंने अपना नोबेल पुरस्कार देश की आम जनता के साथ खुले भाव से साझा किया है.
दक्षिण एशिया में बच्चों की बुरी स्थिति को देखते हुए कैलाश सत्यार्थी ने ‘बचपन बचाओ आंदोलन, एनजीओ 1980 में शुरू किया था. यह संस्था बच्चों के अधिकारों के लिए लगातार काम कर रही है. संस्था ने बच्चों की बंधुआ मजदूरी और बाल तस्करी के खिलाफ लगातार जमीनी स्तर पर काम किया है.
यह संस्था अब तक लगभग 80 हजार बच्चों को का पुनर्वास करा चुकी है. इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का पुनर्वास कराना और उनके अधिकारों के लिए लड़ना संस्था की बडी़ कामयाबी है.
* संस्था का उद्देश्य
बच्चों के लिए काम करने वाली इस संस्था का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जहां बच्चे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और समाज में उनकी भागीदारी बढे़. ताकि वो एक बेहतर भविष्य के निर्माण के सहभागी हों.
संस्था गांवों में ‘बाल मित्र ग्राम’ नाम से योजना चलाती है जिसके तहत बच्चों को बाल को बाल मजदूरी से मुक्त कराया जाता है और उन्हें शिक्षा उपलब्ध कराती है. जिन गांवों में ये संस्था काम कर रही है वहां बच्चों की शिक्षा का स्तर काफी अच्छा है.
यह संस्था जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा भी लेती है. यही नहीं संस्था तस्करों से पर जुर्माना भी लगाती है. बचपन बचाओ आंदोलन के द्वारा फैक्टरियों पर छापामारी कर बच्चों को छुड़ाया जाता है इस काम में पुलिस और मीडिया की भी मदद ली जाती है.
लेकिन आज भी देश में कई ऐसे बच्चे हैं जो तस्करी से शिकार हैं और बाल मजदूरी करने को अभिशप्त हैं. देवेंद्र सत्यार्थी को इस क्षेत्र में अभी बहुत काम करना है नोबेल के बाद उनसे ये अपेक्षा और भी बढ़ जाती है. उन्होंने आज कहा भी है कि वो बच्चों के लिए अपनी सह विजेता मलाला युसूफजई के साथ मिलकर काम करेंगे.