।।राजेंद्र कुमार।।
लखनऊ/नयी दिल्ली : भाजपा चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपना काम शुरू कर दिया है. खबर है कि महिलाओं, युवाओं और मुसलमानों को लुभाने के लिए सम्मेलन आयोजित किया जायेगा.
साथ ही उत्तर प्रदेश उनकी प्राथमिकता सूची में शामिल है. जानकारी के अनुसार मोदी उत्तर प्रदेश से ही चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे, हालांकि अभी ये नहीं बताया गया है कि वे किस शहर से अपने अभियान की शुरुआत करेंगे.
मोदी को प्रचार अभियान का अध्यक्ष बनाये जाने से कांग्रेस में भी खलबली मची हुई है. जयराम रमेश ने तो उन्हें कांग्रेस के लिए चुनौती तक करार दिया है.
नरेंद्र मोदी ने अपने करीबी अमित शाह के जरिये यूपी की राजनीति में प्रवेश कर लिया है. संघ परिवार के रणनीतिकारों ने गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को अब उत्तर प्रदेश के जरिये केंद्रीय राजनीति में भेजने का फैसला किया है.
मोदी को यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला हो गया है. सिर्फइसकी घोषणा होनी बाकी है. उनके लिये जिन स्थानों की चर्चा है उनमें लखनऊ पहले नंबर पर है. यूपी में भाजपा की जमीन को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी लेकर लखनऊ आये मोदी के करीबी अमित शाह ने प्रदेश में मोदी के लिए भी मजबूत जमीन की तलाश शुरू कर दी है.
उन्होंने प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत में इसका संकेत भी दिया. एक प्रमुख नेता के अनुसार, शाह ने बातचीत में यूपी में मोदी की संभावनाओं पर बातचीत की. कहां से लड़ेंगे मोदी भाजपा में चल रही? ह्यमोदी महाभारतह्ण भले ही अभी पूरी तरह खत्म न हुई हो लेकिन संघ परिवार के रणनीतिकारों ने मिशन मोदी और मिशन-2014 की तरफ एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. मोदी के लिए लखनऊ के अलावा जिन सीटों पर संभावना तलाशी जा रही है, उनमें वाराणसी, इलाहाबाद के साथ-साथ भाजपा के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा अयोध्या भी शामिल है.
रणनीतिकार मोदी को लखनऊ सीट से लड़ाकर एक तो अटल बिहारी वाजपेयी के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें स्थापित करना व चर्चा दिलाना चाहते हैं, तो यह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा वाजपेयी की विरासत को महत्वपूर्ण व पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल मानती है. भाजपा की भगवा राजनीति के लिए फैजाबाद का महत्व सभी को पता है. विशेष स्थिति में इलाहाबाद व वाराणसी का भी अध्ययन कराया जा रहा है.
क्या है संघ की रणनीति
मोदी के मुद्दे पर आडवाणी को मनाने वाला संघ मोदी के नाम पर पीछे हटने को तैयार नहीं है. सूत्रों के अनुसार, संघ इन चुनावों को अभी नहीं तो कभी नहीं के रूप में ले रहा है. इसलिए उसकी तरकश में जितने भी तीर हैं उनको उसने इस पर बार आजमा लेने का फैसला किया है. यूपी के गणित में मोदी संघ के रणनीतिकारों को पता है कि यूपी से सीटों की संख्या में इजाफा करके ही केंद्रीय सत्ता पर पार्टी को बैठाने का सपना देखा जा सकता है.
इसके लिये उसके पास सबसे ज्यादा उपयुक्त हथियार हिंदुत्व का ही है. चूंकि भाजपा के भगवा एजेंडे के प्राणतत्व अयोध्या, मथुरा व काशी यहीं हैं. इसलिए वह यहां से ऐसे किसी व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है, जो भगवा एजेंडे को धार दे सके. स्वाभाविक रूप से मोदी इस कसौटी पर फिट बैठते हैं. अटल अब भी फैक्टर यही नहीं चूंकि अटल बिहारी अस्वस्थ हैं. इसलिए भी संघ यूपी से किसी ऐसे चेहरे को उतारना चाहता है, जिसमें अटल की तरह न सही तो भी अपने व्यक्तित्व से वोटों को आकर्षित करने की क्षमता हो.
साथ ही विकास के मुद्दे पर भी उसकी विश्वसनीयता हो. इस कसौटी पर भी संघ के पास फिलहाल मोदी का ही चेहरा है. मोदी न सिर्फभगवा व विकासवादी चेहरा माने जा रहे हैं बल्कि वह भाजपा के राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी नये चेहरे हैं.
…तो अगला चुनाव नहीं लड़ पायेंगे आडवाणी
भाजपा के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी भले ही अब कोपभवन से बाहर आ चुके हों, लेकिन उनकी अगली सियासी पारी की राह में पार्टी के अंदर से ही उम्र की बाधा उत्पन्न करने की नयी जमीन तैयार होने लगी है. विरोधी खेमा अब पार्टी में उम्रदराज नेताओं की भूमिका को लेकर आवाज उठाने की मुहिम शुरू करने जा रहा है. आडवाणी खेमे के माने जानेवाले उत्तराखंड के पूर्व सीएम बीसी खंडूरी ने मोदी समर्थकों की राह आसान कर दी है.
खंडूरी ने कहा है कि 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए. आरएसएस भी लंबे समय से कहता रहा है कि नयी पीढ़ी को आगे लाने के लिए पार्टी के उम्रदराज नेताओं को चुनावी राजनीति से हट जाना चाहिए. पार्टी के पूर्व महासचिव संघप्रिय गौतम तो कुछ समय पहले आडवाणी को पत्र लिख कर संन्यास लेने की सलाह भी दे चुके हैं. इसलिए जल्दी ही भाजपा में उम्रदराज नेताओं को आगामी लोकसभा की चुनावी जंग से दूर रखने की मांग जोर-शोर से उठती दिखाई दे सकती है.
किन पर तलवार यदि ऐसा होता है तो आडवाणी ही नहीं डॉ मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, कल्याण सिंह, शांता कुमार, लालजी टंडन, यशवंत सिन्हा, कैलाश जोशी आदि बुजुर्ग सांसदों के लिए लोकसभा की राह मुश्किल हो जायेगी. अलबत्ता राज्यसभा का दरवाजा खुला रहेगा.
मोदी को लेकर जेडीयू की शर्त ठीक नहीं : रामेश्वर चौरसिया
लखनऊ. नरेन्द्र मोदी को लेकर भाजपा के साथ रिश्ते तोड़ने को अग्रसर जेडीयू के वर्तमान रूख को भाजपा के राष्ट्रीय सचिव व यूपी प्रभारी रामेश्ववर चौरसिया उचित नहीं मानते. रामेश्वर के अनुसार लोकतंत्र में गठबंधन के दलो अपनी शर्त मनवाना उचित नहीं है. नरेन्द्र मोदी को भाजपा क्या जिम्मेदारी दे क्या नहीं ? यह भाजपा के लोग तय करेंगे. भाजपा ने कभी जेडीयू के किसी नेता को मिली जिम्मेदारी पर सवाल नहीं उठाये. शर्त नहीं लगाई.
रही बात नरेन्द्र मोदी को नई जिम्मेदारी देनी की तो भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार की कमान संभालने से पार्टी की सीटों में इजाफा होगा. इसलिए उन्हे जिम्मेदारी दी गई. जिसे लेकर अब भाजपा को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की डेटलाइन जेडीयू के नेता दे रहे हैं. लोकतंत्र में अपने सहयोगी दल पर शर्त लादना या अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की डेटलाइन तय करना उचित नहीं है. ऐसी ही शर्त यदि भाजपा के नेता रखेंगे कि जेडीयू बिहार में भाजपा के मनमुताबित नेता को अपना प्रमुख बनाए तो. इसलिए भाजपा पर दबाव बनाने के प्रयास बंद हो और भाजपा व जेडीयू मिलकर सरकार चलाएं.