मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि महिलाओं की अस्मिता के उल्लंघन के मामलों में पीडि़ता द्वारा दिए गए सबूत आरोपी को पकड़ने के लिए पर्याप्त होने चाहिए और उनकी पुष्टि के लिए प्रमाण देखना आवश्यक नहीं है.
न्यायमूर्ति रोशन दलवी ने एक व्यक्ति को अपनी भाभी की अस्मिता के उल्लंघन के मामले में दोषी पाते हुए यह कहा, इस प्रकार के सबूत केवल पीडि़ता ही दे सकती है. इन मामलों में कोई अन्य देखने वाला, गवाही देने वाला या इसकी पुष्टि करने वाला नहीं होता. शिकायतकर्ता और उसके पति के बीच तलाक की कार्यवाही चल रही है.
वह उसी के घर में अपने बच्चे के साथ रह रही है. इस प्रकार का मामला सामने आने पर पति के परिवार के सदस्य स्वाभाविक तौर पर महिला का साथ नहीं देंगे. न्यायमूर्ति ने 10 जून को सुनाए अपने आदेश में कहा कि पीडि़ता के साथ काफी लंबी जिरह की गई लेकिन उसके दिए साक्ष्यों में किसी प्रकार का विरोधाभास नजर नहीं आया.
पुणे के मजिस्ट्रेट ने अशोक गोडके को उसकी भाभी की अस्मिता का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया था. इसके खिलाफ आरोपी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसे खारिज कर दिया गया.
यह घटना 21 अक्टूबर 2007 को देर रात एक बजे उस समय हुई जब पीडि़ता रसोई में सो रही थी. तभी आरोपी वहां आया और अपनी भाभी की अस्मिता का उल्लंघन करने की कोशिश की. हालांकि महिला ने खुद को बचा लिया और अपनी सास को बुलाया लेकिन सास ने उसकी मदद करने के बजाय पीडि़ता से कहा कि उसका पति उसे छोड़ने जा रहा है तो ऐसे में उसे अपने देवर को ही पति समझना चाहिए.