यह प्रत्येक राजनैतिक दल के लिए भी जरूरी हो गया है कि वे युवाओं की भागदारी बढ़ायें. इसके बगैर उनका भी काम नहीं चलने वाला. वैसे भी देश की आबादी का आधा हिस्सा युवा है. ऐसे में युवाओं के बगैर राजनीति की उम्मीद नहीं की जा सकती. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि राजनीति में आने के लिए ग्रास रूट से सक्रिय होना होगा. चूंकि राजनीति में ऐसा नहीं है कि आप आये और पार्टियों ने आपको ब्रेक दे दिया.
इसके लिए आपको नीचे से शुरुआत करनी होगी. राजनीति का एक पहलू यह भी है कि आपके पास पब्लिक लाइफ का अनुभव है या नहीं. हो सकता है कि आपमें बहुत प्रतिभा हो या यह भी हो सकता है कि आप बहुत अच्छा भाषण दे देते हों, पर यह काफी नहीं है. प्रशासनिक दक्षता का होना भी आवश्यक है.
यह बात बहुत हद तक सही है कि सभी पार्टियों में खानदानी राजनीति चल रही है. मौका मिलता है तो कुंडली मारकर बैठे लोग अपने ही बेटे-बेटियों को पॉलिटिक्स में उतार देते हैं. मगर आने वाले समय में ऐसा चलने वाला नहीं है. काम के आधार पर राजनीति की दिशा तय होगी तो परिवारी राजनीति का दबदबा कम होगा. कांग्रेस में राहुल गांधी ने उम्मीदवारों के चयन के लिए नयी व्यवस्था चालू की है.
इस चुनाव में 16 सीटों पर उम्मीदवारों का चयन नयी प्रक्रिया के तहत हुआ. इसके लिए मुङो इंदौर का प्रभारी बनाया गया था. वहां चुनाव लड़ने के लिए तीन लोगों ने नामांकन भरा. पार्टी के करीब एक हजार वोटरों के बीच उम्मीदवारों के नाम रखे गये. उनमें सत्य नारायण पटेल निर्वाचित हुए. मैंने वहां उम्मीदवारी के लिए हुए चुनाव की रिपोर्ट नेतृत्व को दे दी. इस तरह पटेल उम्मीदवार बनाया गया. हमें लगता है कि काम के आधार पर ही सभी सीटों पर उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया आने वाले समय में लागू होगी. मेरा ऐसा मानना है कि देश भर में राजनीति के प्रति युवाओं का रूझान बढ़ा है. अब से दस साल या बीस साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी. संचार माध्यमों के विस्तार के चलते उनमें जागरूकता आयी है. वे आज की राजनीति के बारे में विमर्श करते हैं. खबरों को पढ़ते-देखते हैं. आज का युवा राजनीति को समझने लगा है. यह बहस का मुद्दा है कि राजनीति अच्छी है या बुरी. पर इतना तय है कि वह राजनीति समझने लगा है. मैं 30 साल पहले किसी एमएलए या एमपी को नहीं जानता था. पर आज का युवा को पता है कि उसका एमएलए या एमपी कौन है. वे सीधे अपने प्रतिनिधियों के पास जाते हैं और उनके बात करते हैं.
यह बात भी बिल्कुल सही है कि राजनीति में युवाओं की सहभागिता उतनी नहीं बन पायी है. सामान्य घरों के युवा आज भी राजनीति में आने के बारे में शायद हौसला नहीं दिखा सकते. राजनीति में जो आ रहे हैं वे बड़े घरों के बेटे-बेटियां हैं. जिस प्रकार मेडिकल, इंजीनियरिंग या अन्य सेवाओं के लिए पात्रता परीक्षा होती है, उस प्रकार राजनीति में कोई सिस्टम नहीं है. दुर्भाग्य से हमारे देश में किसी भी पार्टी में नये लोगों के प्रवेश के लिए कोई रास्ता नहीं बनाया है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसके लिए नया सिस्टम लागू कर रहे हैं. मुङो लगता है कि कांग्रेस के इस प्रयोग को देर-सबेर सभी पार्टियां अपनायेंगी. यही नहीं, आने वाले समय में सभी राजनीतिक दलों को युवाओं के लिए अपने दरवाजे खोलने पड़ेंगे. इसके बिना काम चलने वाला नहीं है. युवाओं की राजनीति में सहभागिता रोकने में एक और बाधा है. यह बाधा है राजनीतिक निरक्षरता की. यह कोई जरूरी नहीं कि पढ़े-लिखे या ज्ञानवान लोग निरक्षर नहीं हो सकते. राजनीति में ऐसे निरक्षर लोगों की कमी नहीं है. ऐसे लोग अपने घर परिवार, अपने लोगों और जाति-धर्म के दायरे से बाहर नहीं सोच सकते हैं. पर आने वाले समय में ऐसा चलने वाला नहीं है. कोई भी दल युवाओं की भागीदारी को रोक नहीं सकते.