नयी दिल्ली : गुजरात के बहुचर्चित ‘जासूसीकांड’ में उस समय नया मोड आ गया जब इस प्रकरण की केंद्रबिन्दु बनी महिला ने अपने पिता के साथ आज उच्चतम न्यायालय की शरण ली और केंद्र तथा राज्य सरकार को अपने जांच आयोगों में आगे बढने से रोकने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के कथित आदेशों पर गुजरात पुलिस ने इस महिला का पीछा किया था.
न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति एन वी रमण की खंडपीठ के समक्ष पिता पुत्री की संयुक्त याचिका का उल्लेख किया गया। खंडपीठ ने कहा कि वह संबंधित पक्षों को सुने बगैर इस मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने के लिये कोई अंतरिम आदेश नहीं दे सकती है. न्यायालय ने केंद्र और गुजरात सरकार को नोटिस जारी करके शुक्रवार तक उनसे जवाब मांगा है. इस मामले में अब शुक्रवार को सुनवाई होगी. याचिका में निजता के मौलिक अधिकार और गरिमा के साथ जीने के अधिकार के संरक्षण का भी अनुरोध किया गया है.
शीर्ष अदालत ने मीडिया से भी आग्रह किया कि इस मामले में महिला का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाये. एक समाचार पोर्टल द्वारा हाल ही में 2009 में महिला आर्कीटेक्ट की जासूसी कराने के बारे में नरेन्द्र मोदी के सहयोगी अमित शाह और राज्य पुलिस के दो प्रमुख अधिकारियों के बीच टेलीफोन पर कथित बातचीत से संबंधित सीडी जारी किये जाने से यह विवाद सुर्खियों में आया था. अगस्त और सितंबर, 2009 के दौरान कथित रुप से हुयी इस बातचीत में स्पष्ट रुप से मोदी के नाम का जिक्र नहीं है लेकिन इसमें ‘साहब’ का हवाला दिया गया है जिसके बारे में पोर्टल का दावा है कि यह गुजरात के मुख्यमंत्री के लिये है जिनके कहने पर ही जासूसी की गयी थी लेकिन शाह ने इस आरोप से इंकार किया है.
गुजरात सरकार ने पिछले साल नवंबर में ही इसकी जांच के लिये एक आयोग गठित किया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी इसका अनुसरण किया. लेकिन उस समय एक बडा विवाद छिड गया जब पिछले सप्ताह वरिष्ठ मंत्रियों ने घोषणा की कि जांच आयोग की अध्यक्षता के लिये न्यायाधीश के नाम की घोषणा की जायेगी. केंद्र सरकार ने कल अपने कदम पीछे खींच लिये क्योंकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दो सहयोगी दलों ने कांग्रेस के इस प्रयास का विरोध किया. इस महिला और उसके पिता ने याचिका में समाचार पोर्टल कोबरा पोस्ट और गुलेल डाटकाम द्वारा जासूसी के संबंध में टेलीफोन बातचीत की सीडी जारी किये जाने के बाद उठे विवाद के बारे में खबरें प्रकाशित या प्रसारित करने से मीडिया को रोकने का भी अनुरोध किया है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि उनके द्वारा कोई शिकायत दर्ज नहीं कराये जाने के बावजूद विभिन्न व्यक्ति अलग अलग कारणों से उनके अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं. कुमार ने पिता पुत्री की ओर से कहा, ‘‘ जब मेरी जान को खतरा था तो उस समय गुजरात सरकार द्वारा उठाये गये सुरक्षा उपायों से मैं संतुष्ट हूं और 2009 में जो कुछ भी हुआ उसके बारे में जब मैं शिकायत नहीं कर रही हूं लेकिन मेरी और मेरे परिवार की छवि को ठेस पहुंचाने के लिये कुत्सित अभियान चलाया जा रहा है.’’ याचिका में उन्होंने गुजरात काडर के आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा द्वारा वेब पोर्टल द्वारा सामने लाये गये अपुष्ट और अप्रमाणित अंशों के आधार पर जासूसी कांड का मसला उठाये जाने और इसकी सीबीआई जांच की मांग पर भी आपत्ति की है.