शिक्षा और स्वास्थ्य देश के दो ऐसे बुनियादी मसलें हैं जिसपर सभी सरकारें खास जोर देती रही हैं. शिक्षा पर तुलनात्मक रूप से खर्च भी ज्यादा है. पर इसकी सबसे बड़ी दिक्कत तरह-तरह के कार्यक्रमों का होना है. ऐसा लगता है कि कार्यक्रमों की पहेली में शिक्षा-व्यवस्था चक्करघिन्नी की तरह घूम रही है. कौशलेंद्र रमण की रिपोर्ट
सर्व शिक्षा अभियान
प्रारंभिक शिक्षा को सब तक पहुंचाने या सबको सुलभ कराने के उद्देश्य से भारत सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत वर्ष 2001 में की थी. इस अभियान का उद्देश्य 86 वां संविधान संशोधन के लक्ष्य को पाना है. 86 वें संविधान संशोधन के तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया.
कार्यक्रम के अनुसार उन बस्तियों में नए स्कूल बनाने का प्रयास किया जाता है जहां स्कूली शिक्षा की सुविधा नहीं है और अतिरिक्त कक्षा, शौचालय, पीने का पानी, रखरखाव अनुदान और स्कूल सुधार अनुदान के माध्यम से मौजूदा स्कूलों की बुनियादी ढांचे में विकास करना है. जिन मौजूदा स्कूलों में अपर्याप्त शिक्षक हैं उनमें अतिरिक्त शिक्षक मुहैया कराना है, जबकि मौजूदा शिक्षकों की क्षमता को व्यापक प्रशिक्षण, विकासशील शिक्षण सामग्री अनुदान और ब्लॉक और जिला स्तर पर एक क्लस्टर पर अकादमिक सहायता संरचना को मजबूत बनाने के लिए अनुदान से सुदृढ़ बनाया जा रहा है. सर्व शिक्षा अभियान, जीवन कौशल सहित गुणवत्ता युक्त प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करता है. सर्व शिक्षा अभियान द्वारा लड़कियों और विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाता है. सर्व शिक्षा अभियान, डिजिटल अंतराल को खत्म करने के लिए कंप्यूटर शिक्षा भी प्रदान करने का प्रयास करता है.
अच्छे परिणामों के लिए, सर्व शिक्षा अभियान के व्यय को 2005-06 में 7156 करोड़ रु पये से 2006-07 में 10,004 करोड़ रुपये तक कर दिया गया. साथ ही 500,000 अतिरिक्त क्लास रूम का निर्माण और 1,50,000 अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति करना लक्ष्य है.
मिड डे मील
इसे मध्याह्न भोजन योजना भी कहा जाता है. नामांकन बढ़ाने, उन्हें बनाए रखने और उपस्थिति के साथ-साथ बच्चों के बीच पोषण स्तर सुधारने के दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पोषण सहयोग कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 से शुरू किया गया. केंद्र द्वारा प्रायोजित इस योजना को पहले देश के 2408 ब्लॉकों में शुरू किया गया. वर्ष 1997-98 के अंत तक एनपी-एनएसपीई (नेशनल प्रोग्राम-न्यूटिशनल सपोर्ट इन प्राइमरी एडुकेशन) को देश के सभी ब्लॉकों में लागू कर दिया गया. 2002 में इसे बढ़ाकर न केवल सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकायों के स्कूलों के कक्षा एक से पांच तक के बच्चों तक के लिए शुरू किया गया बल्किइजीएस (एडुकेशन गारंटी स्कीम) और एआईई (अल्टरनेटिव एंड इनोवेटिव एडूकेशन) केंद्रों में पढ़ रहे बच्चों को भी इसके अंतर्गत शामिल कर लिया गया. इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक स्कूल दिवस को प्रति बालक इतना अनाज दिया जाता है जिससे प्रति बच्च 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन मिल सके. वर्ष 2008 में इस योजना में कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को शामिल किया गया और कार्यक्रम का नाम नेशनल प्रोग्राम-न्यूट्रिशनल सपोर्ट इन प्राइमरी एडुकेशन से बदलकर ‘नेशनल प्रोग्राम ऑफ मिड डे मील इन स्कूल्स’ कर दिया गया. कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए पोषण का मानक प्रति दिन 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन रखा गया है. पहली अप्रैल 2008 से इस स्कीम को पूरे देश में लागू कर दिया गया.
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान
माध्यमिक शिक्षा को लोगों तक पहुंचाने और उसकी गुणवत्ता को सुधारने के लिए इस अभियान की शुरुआत मार्च 2009 में हुई थी. इस अभियान का लक्ष्य पांच वर्षो में माध्यमिक की दर को 52.26} (2005-06) से बढ़ाकर 75} करना है. इसके लिए माध्यमिक स्कूलों की संख्या को बढ़ाने का प्रावधान था. इस अभियान का दूसरा लक्ष्य माध्यमिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. इस स्कीम के तहत यह लक्ष्य रखा गया है कि 12वीं योजना के अंत तक माध्यमिक शिक्षा की पुहंच सभी तक हो और 2020 तक सबको मिल जाए.
इस अभियान के तहत अतिरिक्त क्लासरूम निर्माण, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, शौचालय निर्माण, पीने के पानी की व्यवस्था और सूदूरवर्ती इलाकों में शिक्षकों के लिए हास्टल निर्माण का प्रावधान है.
लड़कियों के लिए हॉस्टल
माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने उनके लिए हॉस्टल बनाने और चलाने का कार्यक्रम वर्ष 2008-09 में शुरू किया था. इस कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत वर्ष 2009-10 में हुई थी. लक्ष्य रखा गया था कि देश के 3479 शिक्षा में पिछड़े ब्लॉकों में लड़कियों के लिए सौ बिस्तरों वाला हॉस्टल बनाया जायेगा. इस योजना का मकसद लड़कियों तक माध्यमिक शिक्षा की पहुंच को आसान करना है. इस स्कीम को एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और बीपीएल श्रेणी की वैसी छात्रओं को लक्ष्य कर के बनाया गया है जिनकी उम्र 14 से 18 वर्ष है और नौवीं से 12 वीं तक की क्लास में पढ़ रही हैं. इन हॉस्टलों में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से निकलने वाली छात्राओं को प्राथमिकता देने का प्रावधान है और 50 फीसदी सीटें एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक लड़कियों को मिलेंगी.
मॉडल स्कूल
मॉडल स्कूलों की स्थापना की घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15 अगस्त 2007 को लाल किले की प्राचीर से की थी. इस अभियान की शुरुआत नवंबर 2008 में हुई. इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों के मेधावी छात्रों को अच्छी शिक्षा के देने के लिए ब्लॉक स्तर पर 6000 मॉडल स्कूल खोलने का प्रस्ताव है. इस स्कीम के क्रियान्वयन के दो तरीके हैं. पहला, शिक्षा में पिछड़े ब्लॉकों में 3500 स्कूलों का निमार्ण और शेष 2500 स्कूलों को पीपीपी मोड में वैसे ब्लॉकों में बनाना जो शिक्षा में पिछड़े नहीं हैं. सरकारी स्तर पर स्कूलों के निमार्ण का कार्य वर्ष 2009-10 में शुरू हो गया है और पीपीपी मोड वाले मॉडल स्कूलों का काम वर्ष 2012-13 में शुरू हुआ.
साक्षर भारत
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना 5 मई 1988 में की गयी थी. इसका उद्देश्य 15 से 35 आयु वर्ग के उत्पादक और पुनरु त्पादक समूह के निरक्षर लोगों को व्यावहारिक साक्षरता प्रदान करते हुए 75 प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य हासिल करना था. दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक इस मिशन के तहत 127.45 मिलियन लोगों को साक्षर बनाया गया जिसमें 60 फीसदी महिलाएं थीं. वर्ष 1991-2001 के बीच साक्षरता दर में 12.63 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. इस अब तक साक्षरता दर में सबसे बढ़ी बढ़ोतरी है. पुनर्संरचना के बाद इसके स्थान पर नया साक्षर भारत कार्यक्र म सितम्बर 2009 से शुरू किया गया है. इसमें महिलाओं को साक्षर बनाने पर ज्यादा जोर दिया गया है.