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बड़ी जान है ई पोलिटिक्स में

आजकल अधिकांश पचास पार के लोगों की आम शिकायत है कि घुटने और कमर में दर्द रहता है. तमाम लोग फीकी चाय पीना पसंद करते हैं और कुछ की तो मज़बूरी है की अब मिठाई की तरफ देखते भी नहीं क्योंकि उनके लिए जहर बन चुकी होती है. थोड़ा सा भी पैदल चलना पड़े या […]

आजकल अधिकांश पचास पार के लोगों की आम शिकायत है कि घुटने और कमर में दर्द रहता है. तमाम लोग फीकी चाय पीना पसंद करते हैं और कुछ की तो मज़बूरी है की अब मिठाई की तरफ देखते भी नहीं क्योंकि उनके लिए जहर बन चुकी होती है. थोड़ा सा भी पैदल चलना पड़े या भीड़ में घिर जाना पड़े तो कहते हैं की चक्कर आने लगता है, घबराहट होने लगती है. साठ के पार पहुंचने के बाद तो घर वाले भी चिंता करने लगते हैं.

मार्निंग वाक पर निकले बाबूजी अगर कहीं लौटने में आधा घंटा देर कर देते हैं तब घर में चिंता होने लगती है, तनी देखिये हो, बाबूजी के कुछो भईल त ना? अबहीं ले लउटले ना, रोज कहल जाला की ढेर लमहर मत टहरल करीं, डागडर कहलें बाड़न टहरे के त ओकर मतलब ई ना होला की अपना जान पर खेल के टहरे, तमाम घरों में चिंता होने लगती है. अब आप कहेंगे की टीवी पर आने वाले जोड़ का दर्द और बुढ़ापे की समस्या जैसी किसी दवाई के विज्ञापन का वर्णन हम काहें करने लगे. बात ई नहीं है बाबू, बात है कि एक उमर सबके जीवन में ऐसी आती है की सेहत थोड़ी ढीली रहने लगती है और आदमी खुद भी सजग रहने लगता है और साथ में घर वाले भी थोड़ा अधिक फिक्र करने लगते हैं. पहलवान लोग का भी ठेहुन पकड़ लेता है और परेड करके रिटायर हुए फौजी भाई लोग भी निपुर जाते हैं लेकिन एक सेक्टर की नौकरी ऐसी है जिसमें उम्र का कोई असर ही नहीं पड़ता और वो सेक्टर है पॉलिटिक्स का मने जिसको समाज सेवा का सबसे बड़ा जरिया माना जाता है.

तमाम चीजों में रिकार्ड होल्डर बिहार से एक नया रिकार्ड बना है, देखिये अब घाम तगड़ा होने लगा है और चुनाव चरम पर है. मौसम के मारे आदमीजन घर से निकलने में परहेज करने लगे हैं लेकिन अपने रामसुंदर दास जी नब्बे बरस से ऊपर की उमर में जिस जोश के साथ लगे हुए हैं की जवान लोग पानी मांगने लगें. नजदीक से देखने का मौका न मिले तो टीवी पर ही देखिये और सोचिए की उनके पास कितनी ऊर्जा है? साधन के चलते पटना -रांची एक्के हो गया है लेकिन जब आम आदमी रांची से पटना आता है तब कहता है की थोड़ा आराम करलें लेकिन देखिये नरेंदर मोदी को केतना दौड़ लगा रहे हैं और हर जगह वइसे ही ललकार रहे हैं. भले हवाई जहाज चाहे हेलिकॉप्टर में उड़ रहे हों लेकिन यात्र तो करिए रहे हैं. दो दिन कोई लगातार चों कर दे त गला फट जाता है, चूना पोत के या बाकी इंतजाम करके आवाज़ को सही करने की कोशिश की जाती है लेकिन मोदी जी एक सुर्रे ललकारे जा रहे हैं. सबेरे कश्मीर में त संझा को केरल में. बड़ा जिगरा वाला काम है भाई, लगभग सब बड़े नेताजी लोग साठ के पार हैं. जनता शिकायत करती है की खाली चुनाव के बखत दिखते हैं अगर यह बात सच है तब तो अउरो बड़ी बात है कि रोज प्रैक्टिस नहीं करते लेकिन चुनाव आते ही इतना जान कहां से आ जाता है? कोई थकान नहीं दिखाई देती, उस उमर के आदमी के जैसे कभी किसी मंच से नहीं बताते की ठेहुन पकड़ लिया है, ललकारते रहते हैं लोग की हमहीं आप सबके तारणहार हैं.

कुछ लोग कहते हैं की स्पेशल चीज खाते होंगे लोग. का स्पेशल खायेंगे? वही खायेंगे न जो बाज़ार में मिलता होगा, सब नुस्खा तो ओपन है. कोई भी चवनपरास खा सकता है लेकिन चवनपरास खाने से इतनी जान नहीं आने वाली. इन लोगों के अंदर सुनते हैं की जनता की सेवा करने का जो जज्बा होता है उसी से ताकत मिलती है वरना इतना भागदौड़ में त दाल -रोटी खाने का भी मौका पता नहीं मिलता होगा की नहीं?अब आप लोग हमारी बात का मजाक मत बनाइयेगा, हां भरोसा न हो तो खुद पोलिटिक्स करिए और आजमा के देख लीजिये या फिर किसी ऐसे का साथ कर लीजिये जो इस सेक्टर में है.

मलंग

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