नयी दिल्ली : कांग्रेस समर्थित संयुक्त मोरचा (यूएफ) सरकार में प्रधानमंत्री रहे इंदर कुमार गुजराल ने पाकिस्तान को सियाचिन में समायोजित करने के लिए 1997 में सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटने के लिए कहा था. यह खुलासा जनरल मलिक ने सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र के लिए 30 साल पहले अघोषित युद्ध की वर्षगांठ पर जारी किताब में किया है.
तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने सरकार के सामने सख्त शर्तें रखते हुए आदेश मानने से मना कर दिया. जो शर्तें जनरल ने रखी थीं, उसे पाक मानने से मना करता रहा है. 1998 में गुजराल सरकार के गिरने के बाद इस पर रोक लगानी पड़ी. 13 अप्रैल 1984 को भारत ने सियाचिन को पाक से बचाने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया था. तब से दोनों देशों के बीच मामला ठंडा नहीं पड़ा है.
* क्या कहते हैं विशेषज्ञ : कूटनीति विशेषज्ञों का कहना है कि मलिक ने सही कदम उठाया था. अगर सेना सियाचिन से हट जाती, तो यह बहुत बड़ी चूक होती. गुजराल ने पाकिस्तान के दबाव में जो कदम उठाने की कोशिश की थी, वह आत्मघाती साबित होता. गुजराल कार्यकाल के दौरान पाक में रॉ की गतिविधियां मंद हो गयी थीं, जिसे आज भी बड़ी गलती माना जाता है. भारत ने पाकिस्तान मे जो खुफिया तंत्र का जाल बिछाया था, वह एक झटके मे खत्म हो गया था.
* क्या थी गुजराल की नीति
सियाचिन पर गुजराल की नीति दो पूर्व प्रधानमंत्रियों (राजीव और इंदिरा) से बिल्कुल अलग थी. पाकिस्तान के पूर्व राजदूत जी पार्थासारथी ने बताया, राजीव ने मुझसे कहा था कि मैं वह इलाका कभी खाली नहीं करूंगा, क्योंकि हमारे देश के सैनिकों ने उस इलाके के लिए अपना खून बहाया है. यह बात पत्रकार नितिन गोखले की किताब बियॉंड एनजे 9842 : द सियाचिन सागा के जारी होने के बाद कही. राजीव पर भी सियाचिन को लेकर दबाव था और एक लॉबी चाहती थी की वह इस मामले में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से बात करें.
* मनमोहन भी यही चाहते थे
पहले गुजराल चाहते थे की सेना हट जाये और वर्तमान पीएम मनमोहन सिंह भी चाहते थे की भारतीय सेना सियाचिन से पीछे हट जाये. ताकि सियाचिन को माउंटेन ऑफ पीस कहा जाये. हालांकि, भारतीय सेना का मानना है कि अगर सेना सियाचिन से पीछे हटती है तो पाकिस्तानी सेना इसका फायदा उठा लेगी.