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गोधरा कांडः 15 साल बाद आया गुजरात हार्इकोर्ट का फैसला, किसी को नहीं मिली फांसी, 59 लोगों को जलाया था जिंदा

अहमदाबादः गुजरात हार्इकोर्ट ने सोमवार को गोधरा में साबरमती ट्रेन के डिब्बों में की गयी आगजनी की वारदातों को लेकर अहम फैसला सुना दिया है. 15 साल पहले अयोध्या से गुजरात लौट रहे 59 कार सेवकों को जिंदा जला दिया गया था. इस मामले में हार्इकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सभी दोषियों को उम्र कैद […]

अहमदाबादः गुजरात हार्इकोर्ट ने सोमवार को गोधरा में साबरमती ट्रेन के डिब्बों में की गयी आगजनी की वारदातों को लेकर अहम फैसला सुना दिया है. 15 साल पहले अयोध्या से गुजरात लौट रहे 59 कार सेवकों को जिंदा जला दिया गया था. इस मामले में हार्इकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सभी दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनायी है. इस मामले में हार्इकोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया है. वहीं, 20 लोगों के आजीवन कारावास को हार्इकोर्ट ने जारी रखा है. इस मामले में निचली अदालत ने 21 लोगों को दोषी करार देते हुए 11 लोगों को फांसी की सजा सुनायी थी.

हार्इकोर्ट ने एसआईटी की विशेष अदालत की ओर से मामले में आरोपियों को दोषी ठहराये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर फैसला दिया है. ट्रायल कोर्ट में दोषी ठहराये गये इन आरोपियों का कहना था कि उन्हें न्याय नहीं मिला है. उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी. साल 2002 में अंजाम दी गयी इस वारदात की न्यायिक प्रक्रिया में सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक शामिल रहे.

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गौरतलब है कि गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में लगी आग में 59 कारसेवकों की मौत हो गयी थी. इस मामले में करीब 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी. बताया जाता है कि इस ट्रेन में भीड़ ने पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी, जो गोधरा कांड की जांच कर रहे नानवती आयोग ने भी माना है. इसके बाद प्रदेश में सांप्रदायिक दंगा भड़का और उसमें 1200 से अधिक लोग मारे गये. आग लगाने को लेकर कई लोगों को गिरफ्तार किया गया.

ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किये गये लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश यानि पोटा लगाया गया. हालांकि, उसे बाद में हटा भी लिया गया था. दंगों के बाद सरकार ने ट्रेन में आग लगने और उसके बाद हुए दंगों की जांच करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया. उसके बाद पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड़यंत्र का मामला दर्ज कर दिया. केंद्र सरकार के दबाव में 3 मार्च, 2002 को आरोपियों पर लगाये गये पोटा को हटा लिया गया.

वर्ष 2003 में एक बार फिर आरोपियों के खिलाफ आतंकवाद संबंधी कानून लगा दिया गया. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई भी न्यायिक सुनवाई होने पर रोक लगा दी थी. साल 2004 में यूपीए ने सरकार बनायी और पोटा कानून के खत्म कर दिया. जनवरी 2005 में जांच कर रही यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक दुर्घटना थी. इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगायी गयी थी.

वर्ष 2006 में गुजरात हाईकोर्ट ने यूसी बनर्जी समिति को अमान्य करार देते हुए उसकी रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि आग सिर्फ एक दुर्घटना थी. उसके बाद 2008 में एक जांच आयोग बनाया गया और नानावटी आयोग को जांच सौंपी गयी, जिसमें कहा गया था कि आग दुर्घटना नहीं बल्कि एक साजिश थी. जनवरी 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले में न्यायिक कार्रवाई करने को लेकर लगायी रोक हटा ली. फरवरी 2011 में विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया.

मार्च 2011 में विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनायी. इसके बाद साल 2014 में नानावती आयोग ने 12 साल की जांच के बाद गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दी थी.

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