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नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने एक फैसले में कहा है कि मुसलिमसमाज में तीन तलाक के जरिए दिये जाने वाले तलाक की प्रथा ‘अमान्य ‘, ‘अवैध ‘ और ‘असंवैधानिक ‘ है. शीर्ष अदालत ने 3-2 के मत से सुनाये गये फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि तीन तलाक का मुद्दा हमारे देश में कैसे गर्म होता गया? वह कौन मुस्लिम महिला थीं, जिनके कारण पहली बार तीन तलाक की व्यवस्था व्यापक स्तर पर चर्चा में आयी. देश में तीन तलाक के खिलाफ खड़ी होने पर पहली बार व्यापक स्तर पर चर्चा में आने वाली महिला शाह बानो थीं और यह बात राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल की है.
शाह बानो ने हिम्मत दिखा कर तीन तलाक के खिलाफ न्याय मांगने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटायाथा. उनके कारण यह मामला तब इतना चर्चित हुआ कि उसका ‘शाह बानो केस’नामपड़ गया. 62 वर्षीय शाह बानो एक मुसलिम महिला थीं, जिन्हें 1978 में उनके पति ने तलाक दे दिया था. वह पांच बच्चों की मां थीं. इसके बाद वे जीविका भत्ते के लिए कोर्ट पहुंचीं. सात साल के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. तब सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने को कहा. तब इस व्यवस्था को संस्कृति व पर्सनल लॉ के खिलाफ बताया गया.
सैयद शाहबुद्दीन और एमजे अकबर ने इसके खिलाफ अभियान शुरू किया और इन लोगों ने ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन किया और आंदोलन की चेतावनी दी. तबके प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विरोध करने वालों की मांगें मान ली और इसे धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण बताया. इसके बाद 1986 में राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून पास कर शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया. राजीव गांधी सरकार ने तब मुसलिम महिला तालाक अधिकार संरक्षण कानून 1986 पारित कराया था.
शाह बानो के पति ने क्या दी थी दलील
शाह बानो मध्य प्रदेश के इंदौर की थीं. 62 साल की उम्र में उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने उन्हें तलाक दे दिया था. तलाक के समय शाह बानो के पांच बच्चे थे. इन बच्चों के भरण-पोषण के लिए शाह बानो ने कोर्ट कर रुख किया और पति से भत्ता दिलाने की गुजारिश की. कोर्ट ने जब शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान से पूछा कि आखिर वे भरण-पोषण भत्ता देने के इच्छुक क्यों नहीं हैं? इसके जवाब में अहमद खान ने कहा, कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाकशुदा महिलाओं को ताउम्र भरण-पोषण भत्ता दिये जाने का कोई प्रावधान नहीं है.’