इन दिनों फेसबुक पर लक्ष्मीकुट्टी अम्मा की काफी चर्चा है. केरल के कलार, तिरुअनंतपुरम के जंगलों में रहती हैं लक्ष्मीकुट्टी.
75 साल की इन आदिवासी महिला को लोग प्यार और सम्मान से ‘जंगल की बूढ़ी अम्मा’ कहते हैं. वह कवयित्री हैं, औषधीय वनस्पतियों से जहर का इलाज करती हैं और केरला फोक एकेडमी में पढ़ाने जाती हैं.
इन्हें मुंहजबानी 500 जड़ी-बूटियों के नाम याद हैं, जो इन्होंने अपनी दादी-नानी और मां से जाना था. इन्हें अब ये कागज पर उतार चुकी हैं, जो छपने के लिए तैयार है. लक्ष्मीकुट्टी कविताएं लिखती हैं और आदिवासी संस्कृति पर उनकी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
केरल सरकार ने जंगल की इन बूढ़ी अम्मा को 1995 में पारंपरिक आदिवासी चिकित्सा ज्ञान के लिए राजकीय सम्मान दिया है. यह बूढ़ी आदिवासी महिला आज भी हर दिन जंगली वनस्पतियों से लोगों का उपचार करती हैं.
सर्प-विष यानी सांप के जहर से बचाव का इनके पास अचूक नुस्खा है. सलाम है जंगल की इनांर्पपकेज-विष से बचाव का इनके पास अचूक नुस्खा है. सलाम है जंगल की इन बूढ़ी अम्मा को.