केले के रेशों को बनाया आमदनी का जरिया

केले के फल और पत्तों का उपयोग तो हम सब जानते हैं, लेकिन केला के थम का रेशा बना कर उससे ड्रेस तैयार करने के बारे में फिलहाल बहुत कम ही लोगों को जानकारी है. इस काम को अंजाम दे रहीं है सिवासिंहपुर, मोइनुद्दीन नगर, समस्तीपुर की पूजा सिंह.अपने गांव और घर के लोगों के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 18, 2017 10:55 AM

केले के फल और पत्तों का उपयोग तो हम सब जानते हैं, लेकिन केला के थम का रेशा बना कर उससे ड्रेस तैयार करने के बारे में फिलहाल बहुत कम ही लोगों को जानकारी है. इस काम को अंजाम दे रहीं है सिवासिंहपुर, मोइनुद्दीन नगर, समस्तीपुर की पूजा सिंह.अपने गांव और घर के लोगों के लिए कुछ करने की चाहत हमेशा रही. इसी वजह से पूजा ने कुछ साल बिहार से बाहर बिताने के बाद अपने गांव वापस आ कर काम करना शुरू किया. सबसे पहले वह केले के थम से रेशा तैयार करती हैं. फिर इस रेशे की बुनाई करके इससे ड्रेस मेटेरियल से लेकर तरह-तरह के सजावट आदि का समान तैयार करती हैं.

खादी के कुरता जैसा दिखनेवाला केले के थम के रेशे से बना कुरता हो या फिर महिलाओं द्वारा पहनी जानेवाली साड़ियां- हर किसी भी में पूजा अपनी क्रियेटीविटी का पुट डाल कर उसे नायाब बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. इन रेशों से बने कपड़े गरमी हो या जाड़ा, हर मौसम में पहनने के लिए बेहद अनुकूल व आरामदायक होते हैं.

फेंके हुए अंशों को बनाती हैं कमाई का जरिया

हाजीपुर, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में काफी बड़े क्षेत्र में केले की खेती होती है. किसान केले की फसल से फल प्राप्त कर लेने के बाद प्राय: उसके थम को फेंक देते हैं. यह थम खेत में या सड़क के किनारे पड़ा सड़ जाता है. पूजा अब इन थमों को फिंकने नहीं देतीं. वह किसानों को उचित पारिश्रमिक देकर इन्हें खरीद लेती हैं. पूजा ने बताया, ‘जिस केले के थम को किसान पहले फेंक दिया करते थे, उन्हें अब मैं उनसे खरीद लेती हूं. फेंके गये थम सड़ने के बाद कचरा बन जाते थे, अब वहीं थम किसान के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन गये हैं. इस तरह मेरी भी जरूरत पूरी हो जाती है और किसान भी खुश हो जाते हैं. थम को साफ करने के बाद मशीन से उसका रेशा तैयार किया जाता है. फिर मैं इन रेशों का उपयोग अलग-अलग तरह की चीजें बनाने के लिए करती हूं. ‘

कई जिलों में फैला है काम

वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार में डिजाइनर के रूप में कार्यरत पूजा को इस काम का आइडिया भी वहीं से आया. उनके अनुसार, ‘दक्षिण भारतीय राज्यों में केले का उत्पादन काफी अधिक होता है. इन राज्यों से केले के थम के रेशों से तैयार कई तरह का डिजाइनर सामान मंत्रालय में अकसर आते रहते हैं. मुझे लगा बिहार में भी कई जगहों पर केले का उत्पादन होता है, इसलिए मैंने अपने ही गांव से शुरुआत करने का निर्णय लिया.’

पूजा ने समस्तीपुर के पांच एकड़ क्षेत्र में अपनी फैक्ट्री लगा रखी है. इसके अलावा बिहार के कई अन्य स्थानों पर भी उनकी फैक्ट्री है. कटिहार में महिलाओं से हैंडीक्राफ्ट का काम करवाया जाता है. मोतीहारी सहित कई जगहों पर इस काम को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. आगे भी कुछ जगहों पर इस काम को शुरू करने की योजना है, ताकि इसकी उपलब्धता सभी जगहों पर हो सके. साथ ही वहां के लोगों को राेजगार भी मिल सके. साथ ही रेशा तैयार कर दूसरे राज्यों में भी भेजने की तैयारी भी है.

300 महिलाओं को दे रखी है रोजगार

केले से रेशें तैयार कर उसका अलग-अलग हैंडी क्राफ्ट का रूप दिया जाता है. इस काम को करने में ग्रामीण स्तर पर महिलाओं को तैयार किया जाता है. हैंडी क्राफ्ट के इस काम से पूजा ने अब तक करीब 300 महिलाओं को जोड़ रखा है. पूजा बताती हैं, ‘रेशा से लेकर कपड़ों की सीट तैयार करने का पूरा काम मशीन द्वारा किया जाता है. लेकिन रेशे से हैंडी क्रॉफ्ट का समान महिलाएं खुद अपने हाथों से तैयार करती हैं. इसके लिए महिलाओं को बाकायदा ट्रेनिंग भी दी जाती है. ट्रेनिंग के बाद महिलाएं अलग-अलग डिजाइन का हैंडी क्राफ्ट सामान तैयार करती हैं.’ अधिक-से-अधिक महिलाओं को इस काम से जोड़ने के पीछे पूजा का मुख्य उद्देश्य उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है.

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