कैंसर को कैंसर क्यों कहा जाता है? यहां जानें इसका दिलचस्प जवाब

कैंसर शब्द उसी युग से आया है. पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत और चौथी शताब्दी की शुरुआत में, डॉक्टर घातक ट्यूमर का वर्णन करने के लिए कार्किनो-केकड़े के लिए प्राचीन ग्रीक शब्द-शब्द का उपयोग करते थे.

By Agency | May 10, 2024 6:00 PM

कैंसर से पीड़ित किसी व्यक्ति का सबसे पहला विवरण चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से मिलता है. काला सागर पर हेराक्लीया शहर के तानाशाह सैटिरस जांघ और अंडकोश के बीच कैंसर हो गया. जैसे-जैसे कैंसर फैलता गया, सैटिरस को बेतहाशा दर्द होने लगा. वह सो नहीं पाता था और उसे ऐंठन होती थी. शरीर के उस हिस्से में फैलने वाले कैंसर को लाइलाज माना जाता था, और ऐसी कोई दवा नहीं थी जो पीड़ा को कम कर सके. इसलिए डॉक्टर कुछ नहीं कर सके. आख़िरकार, कैंसर ने 65 वर्ष की आयु में सैटिरस की जान ले ली. इस काल में कैंसर के बारे में लोग जानते थे. पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत या चौथी शताब्दी के प्रारंभ में लिखे गए एक पाठ, जिसे महिलाओं के रोग कहा जाता है, में बताया गया है कि ब्रेस्ट कैंसर कैसे विकसित होता है. इसमें बताया गया है कि कैंसर होने पर कठोर गांठें बनने लगती हैं, जिनमें छिपे हुए कैंसर विकसित होते हैं, मरीजों के स्तनों से लेकर उनके गले और कंधे तक दर्द होता है, ऐसे रोगियों का पूरा शरीर पतला हो जाता है, सांस लेना कम हो जाता है, गंध महसूस नहीं होती है. इस अवधि के अन्य चिकित्सा कार्यों में विभिन्न प्रकार के कैंसर का वर्णन किया गया है. यूनानी शहर अब्देरा की एक महिला की छाती के कैंसर से मृत्यु हो गई; गले के कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति डॉक्टर द्वारा ट्यूमर जला देने के बाद जीवित बच गया.

कैंसर शब्द कहां से आया है?

कैंसर शब्द उसी युग से आया है. पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत और चौथी शताब्दी की शुरुआत में, डॉक्टर घातक ट्यूमर का वर्णन करने के लिए कार्किनो-केकड़े के लिए प्राचीन ग्रीक शब्द-शब्द का उपयोग करते थे. बाद में, जब लैटिन भाषी डॉक्टरों ने उसी बीमारी का वर्णन किया, तो उन्होंने केकड़े के लिए लैटिन शब्द का इस्तेमाल किया : कैंसर. तो, इस बीमारी का यह नाम पड़ गया. प्राचीन काल में भी, लोगों को आश्चर्य होता था कि डॉक्टरों ने इस बीमारी का नाम एक जानवर के नाम पर क्यों रखा. एक व्याख्या यह थी कि केकड़ा एक आक्रामक जानवर है, जैसे कैंसर एक आक्रामक बीमारी हो सकती है; दूसरी व्याख्या यह थी कि केकड़ा किसी व्यक्ति के शरीर के एक हिस्से को अपने पंजों से पकड़ सकता है और उसे निकालना मुश्किल हो सकता है, जैसे कैंसर विकसित होने के बाद उसे निकालना मुश्किल हो सकता है. कुछ को लगता है कि यह नाम कैंसर के स्वरूप के कारण दिया गया था.

चिकित्सक गैलेन (129-216 ई.) ने अपने कार्य ए मेथड ऑफ मेडिसिन टू ग्लॉकोन में स्तन कैंसर का वर्णन किया है और ट्यूमर के रूप की तुलना केकड़े के रूप से की है: हमने अक्सर स्तनों में बिल्कुल केकड़े जैसा ट्यूमर देखा है. जिस प्रकार उस जानवर के शरीर के दोनों ओर पैर होते हैं, उसी प्रकार इस रोग में भी अप्राकृतिक सूजन की नसें दोनों ओर खिंचकर केकड़े के समान आकृति बनाती हैं. हर कोई इस बात से सहमत नहीं था कि कैंसर किस कारण से हुआ ग्रीको-रोमन काल में कैंसर के कारण के बारे में अलग-अलग राय थी.

एक व्यापक प्राचीन चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार, शरीर में चार अवयव होते हैं: रक्त, पीला पित्त, कफ और काला पित्त. इन चारों गुणों को संतुलन में रखना जरूरी है, नहीं तो व्यक्ति बीमार हो जाता है. यदि कोई व्यक्ति काले पित्त की अधिकता से पीड़ित है, तो यह सोचा जाता था कि यह अंततः कैंसर का कारण बनेगा. चिकित्सक एरासिस्ट्रेटस, जो लगभग 315 से 240 ईसा पूर्व तक जीवित रहे, असहमत थे. हालांकि, जहां तक हम जानते हैं, उन्होंने कोई वैकल्पिक स्पष्टीकरण नहीं दिया.

कैंसर का इलाज कैसे किया गया?

कैंसर का इलाज विभिन्न तरीकों से किया गया. ऐसा सोचा गया था कि शुरुआती चरण में कैंसर को दवाओं से ठीक किया जा सकता है. इनमें पौधों से प्राप्त दवाएं शामिल थीं (जैसे ककड़ी, नार्सिसस बल्ब, कैस्टर बीन, बिटर वेच, पत्तागोभी). जानवर (जैसे केकड़े की राख); और धातुएं (जैसे आर्सेनिक). गैलेन ने दावा किया कि इस प्रकार की दवा का उपयोग करके, और अपने रोगियों को बार-बार उल्टी या एनीमा से शुद्ध करके, वह कभी-कभी उभरते हुए कैंसर को गायब करने में सफल रहे। उन्होंने कहा कि, समान उपचार कभी-कभी कैंसर को बढ़ने से रोकता है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर ये दवाएं काम नहीं करती हैं तो सर्जरी ज़रूरी है.

आमतौर पर सर्जरी से परहेज किया जाता था क्योंकि मरीजों की खून की कमी से मृत्यु हो जाती थी. सबसे सफल ऑपरेशन स्तन के सिरे के कैंसर के थे. एक चिकित्सक लियोनिडस, जो दूसरी और तीसरी शताब्दी ईस्वी में रहते थे, ने जलाकर कैंसर से इलाज की विधि का विवरण दिया है. कैंसर को आम तौर पर एक लाइलाज बीमारी माना जाता था, और इसलिए इस बीमारी को लेकर लोगों में बहुत डर था. कैंसर से पीड़ित कुछ लोग, जैसे कवि सिलियस इटैलिकस (26-102 ई.) ने पीड़ा समाप्त करने के लिए आत्महत्या कर ली. मरीज़ इलाज की आशा के लिए भगवान से प्रार्थना भी करते थे। इसका एक उदाहरण इनोसेंटिया है, जो एक कुलीन महिला थी जो पांचवी शताब्दी ईस्वी में कार्थेज (आधुनिक ट्यूनीशिया में) में रहती थी. उसने अपने डॉक्टर को बताया कि, दैवीय हस्तक्षेप से उसका स्तन कैंसर ठीक हो गया, हालांकि उसके डॉक्टर ने उस पर विश्वास नहीं किया.

अतीत से भविष्य की ओर हमने सैटिरस से शुरुआत की, जो ईसा पूर्व चौथी शताब्दी का एक तानाशाह था. तब से लगभग 2,400 वर्षों में, कैंसर का कारण क्या है, इसे कैसे रोका जाए और इसका इलाज कैसे किया जाए, इस बारे में हमारे ज्ञान में बहुत बदलाव आया है. हम यह भी जानते हैं कि कैंसर 200 से अधिक प्रकार के होते हैं. कुछ लोगों के कैंसर का इतनी सफलतापूर्वक प्रबंधन किया जाता है कि वे लंबे समय तक जीवित रहते हैं. लेकिन अभी भी ‘‘कैंसर’’ का कोई सामान्य इलाज नहीं है, एक ऐसी बीमारी जो लगभग पांच में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में विकसित होती है. अकेले 2022 में, वैश्विक स्तर पर लगभग कैंसर के दो करोड़ नये मामले और कैंसर से 97 लाख मौतें हुईं. हमें स्पष्ट रूप से एक लंबा रास्ता तय करना है.

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