Shaheed Diwas 2022: क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की 91वीं पुण्यतिथि पर जानें कुछ रोचक फैक्ट्स

Shaheed Diwas: भगत सिंह को 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2022 10:31 AM

भारत के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. मृत्युदंड ने हजारों लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन का मुद्दा उठाने के लिए प्रेरित किया था. 1929 में उन्होंने और एक सहयोगी ने भारत की रक्षा अधिनियम के कार्यान्वयन का विरोध करने के लिए दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका और फिर आत्मसमर्पण कर दिया. सांडर्स की हत्या के आरोप में उन्हें 23 साल की उम्र में फांसी दे दी गई थी. जानें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से जुड़ी अन्य रोचक बातें.

जानें कहां दी गई थी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी

23 मार्च को मनाया जाने वाला शहीद दिवस, उस दिन को चिह्नित करता है जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने ‘नाटकीय हिंसा’ के कृत्यों और भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में उनकी भूमिका के लिए मार डाला था. तीनों को 23 मार्च को पाकिस्तान स्थित लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई. देश के प्रति उनके योगदान को आज भी सम्मानित किया जाता है, और पीढ़ी दर पीढ़ी उनके बलिदानों पर ग्रंथों, कहानियों, फिल्मों, नाटकों आदि के माध्यम से शिक्षित किया जाता है.

भगत सिंह जेम्स स्कॉट को लाला लाजपत राय की मौत का जिम्मेदार मानते थे

जॉन सॉन्डर्स के नाम से एक 21 वर्षीय ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को घातक रूप से गोली मारने के लिए उन्हें मार डाला गया, जिसे उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट मूल रूप से लक्षित किया था. तीनों का मानना ​​​​था कि स्कॉट लोकप्रिय राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार थे, जिन्होंने लाठी चार्ज के दौरान चोटों के कारण दम तोड़ दिया था. इस कार्य के लिए पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर मुकदमा चलाया गया और फिर उन्हें फांसी दे दी गई.

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की घोषणा की थी

भगत सिंह ने सार्वजनिक रूप से लाला राजपत राय की मौत का बदला लेने की घोषणा की थी, इस गोलीबारी के बाद वे कई महीनों तक छिप गए, वह एक सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ फिर से सामने आए, और दोनों ने अप्रैल 1929 में, दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा के अंदर दो विस्फोटक उपकरणों को बंद कर दिया. और फिर प्रसिद्ध नारे: “इंकलाब जिंदाबाद”, या “क्रांति जीवित रहें” चिल्लाते हुए खुद को गिरफ्तार करने की अनुमति दे दी.

जेल में भी कैदियों के लिए प्रदर्शन करते रहे भगत सिंह

कैदियों के लिए बेहतर रहने की स्थिति की मांग करते हुए, जेल में उनका समय विरोध प्रदर्शन में बीता. इस समय के दौरान, उन्हें जनता की सहानुभूति प्राप्त हुई, खासकर जब वे साथी प्रतिवादी जतिन दास के साथ भूख हड़ताल में शामिल हुए. सितंबर 1929 में दास की भूख से मौत के साथ हड़ताल समाप्त हो गई. दो साल बाद, भगत सिंह को दोषी ठहराया गया और 23 साल की उम्र में फांसी दे दी गई.

भगत सिंह की मृत्यु के बाद भी उनके विचार लोगों में जोश भरते रहे

उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि उनकी मृत्यु के बाद भी वे देश में लहरें बनाते रहे, जो उनके जाने के बाद स्तब्ध रह गए. वास्तव में, जवाहरलाल नेहरू ने उनके बारे में यहां तक ​​लिखा था: “भगत सिंह अपने आतंकवाद के कृत्य के कारण लोकप्रिय नहीं हुए, बल्कि इसलिए कि वह इस समय लाला लाजपत राय और उनके माध्यम से राष्ट्र के सम्मान की रक्षा करते थे. वह एक प्रतीक बन गये. कुछ महीनों के भीतर ही भगत सिंह का नाम पंजाब के प्रत्येक शहर और गांव, और कुछ हद तक शेष उत्तरी भारत में गूंज उठा.

Next Article

Exit mobile version