फरवरी महीनें में 29 तारीख चार साल बाद आती है. इसलिए इसे लीप इयर कहतें हैं लेकिन इस माह ऐसा क्यों होता है क्या आप जानते हैं? नहीं न! आज आपको हम ये बता देते हैं कि क्यों फरवरी माह को लीप इयर कहा जाता है और ये माह कम दिनों का क्यों हैं?
लीप इयर के पीछे कई सालों पहले की कहानी है. बात लगभग 2000 ईसापूर्व की है, जब इटली पर जूलियस सीजर का राज हुआ करता था. जूलियस सीजर के समय में जो कैलेंडर प्रयोग किया जाता था, उसमें प्रतिवर्ष में 355 दिनों को शामिल किया गया था.
लेकिन इससे उन्हें समस्या होती थी क्योंकि उन्हें दो वर्ष 22 दिनों का हिसाब जोड़ना पड़ता था. जूलियस सीजर इस समस्या से बहुत दुखी हो गया था. उसने अपने ज्योतिषी से ऐसी व्यवस्था करने को कहा जिससे कालक्रम गड़बड़ हुए बगैर ही यह समस्या सुलझ जाए.
इसके बाद राज्य के ज्योतिष ने एक साल में 365 दिनों को शामिल किया और हर 4 साल में एक दिन जोड़ने का प्रस्ताव जूलियस सीजर के सामने रख दिया.
इसके बाद भी इस कालक्रम में कई बदलाव और सुधार किए गये. अंतिम बार ये सुधार करने वाले थे पोप ग्रेगरी 13. उन्होंने ही 29 दिनों के साल को लीप ईयर का नाम दे दिया.
आज हम जिस ग्रेगेरियन कैलेंडर का अनुसरण करते हैं वो पोप ग्रेगेरी के नाम पर ही रखा गया है. अब ये भी जाने कि पोप ग्रेगरी कौन थे…
7 जनवरी सन 1502 में पोप राज्य बोलोग्ना में जन्में पोप ग्रेगरी का वास्तविक नाम यूगो बोनकोनपागनी था. नजदीकी शहर में ही अपनी पढ़ाई की दीक्षा लेने वाले पोप ने कानून की डिग्री भी हासिल की थी.
28 वर्ष की उम्र ही वे एक कानून विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी बन गए थे, लेकिन बौद्धिक क्षमता के धनी पोप की दिलचस्पी हमेशा धार्मिक मसलों पर ही होती थी. वे एक विचारशील कैथोलिक थे. 13 मई 1572 में यूगो को 13वां पोप बनाया गया, जिसके बाद उनका नाम पड़ा ‘पोप ग्रेगरी 13’.
हमारा वैश्विक इतिहास उन्हें ग्रेगेरियन कैलेंडर के निर्माण को लेकर जानता है. इनकी 83 वर्ष की आयु में पोप ग्रेगरी की मृत्यु 10 अप्रैल, 1585 को हो गई थी.