देश भर में दिवाली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है. मिठाईयां, पटाखे, पकवानों और रोशनी में सराबोर घर-आँगन त्यौहार की रोनक बढ़ाते हैं. लेकिन क्या कभी आपने किसी ऐसी दिवाली के बारे में सुना है, जहाँ जानवरों की बलि दे कर दिवाली मनाई जाती है?
दिवाली की पौराणिक परंपरा के अनुसार,जब प्रभु़ श्रीराम ने रावण को युद्ध में हराया, उसके बाद वे लक्ष्मण व सीता सहित लगभग 14 वर्ष बाद कार्तिक अमावस्या को अयोध्या पहुंचे थे, जिसकी ख़ुशी में उनका स्वागत दीयों को जला कर किया गया था. लेकिन एक ऐसी जगह भी है जहाँ दिवाली पर बलि दी जाती है. आइए आपको बताते हैं…
हिमाचल की दिवाली भी अजीब है. जहाँ सारे देश में दीये, मिठाईयां, पकवान और पटाखों से त्यौहार मनाया जाता है वहां हिमाचल में जानवरों की बलि दे कर दिवाली मनाई जाती है.
हिमाचल की परंपरा के अनुसार, हिमाचल की बुड्ढी दिवाली देशभर में मनाई जाने वाली दीवाली के बाद पड़ने वाली पहली अमावस्या से शुरू होती है.
यह त्यौहार ढोल-नगाड़ों के बीच जानवरों की बलि देकर देवी-देवताओं को प्रसन्न करने, उनकी प्रार्थना करने, लोकगीत गाने और खुशियां मनाने का प्रतीक है.
इस त्यौहार के प्रतीक के रूप में सैकड़ों बकरियों और भेड़ों की बलि दी जाती है. परंपरा के अनुसार, पशुधन विशेषकर बकरी रखने वाले ग्रामीण अपने पशुओं को नजदीक के मंदिर में ले जाते हैं जहां त्यौहार की पहली रात पशु की बलि दी जाती है और देवी-देवताओं की प्रतिमा के आगे पशुओं के कटे सिर पेश किए जाते हैं.
कटे हुए पशुओं को प्रसाद के रूप में घर ला कर पकाया जाता है. यही नहीं इसी प्रसाद को खाने और खिलाने का भी यहाँ चलन है. लोग गाना-बजाना करते हुए रात भर और आने वाले दिन तक अपने इस अद्भुत पर्व को मनाते हैं.