Love Hostel Review
फिल्म -लव हॉस्टल
निर्माता -रेड चिलीज एंटरटेनमेंट और दृश्यम फिल्म्स
निर्देशक- शंकर रमन
कलाकार -बॉबी देओल विक्रांत मेस्सी, सान्या मल्होत्रा और अन्य
प्लेटफार्म- ज़ी 5
रेटिंग- तीन
ऑनर किलिंग पर हिंदी सिनेमा में अब तक कई फिल्में बन चुकी है और लव होस्टल उसी की अगली कड़ी है खास बात है कि यह फ़िल्म बॉलीवुड के प्रचलित मसाला फॉर्मूले के ट्रीटमेंट से नहीं बनी है बल्कि समाज के असली चेहरे को सामने ले आती है जो थोड़ा असहज भी कर सकता है. फ़िल्म का नाम लव होस्टल ज़रूर है लेकिन फिल्म से लव दूर-दूर तक गायब है यह पूरी तरह से डार्क फिल्म है इसमें सिर्फ दहशत है.
फ़िल्म की कहानी हरियाणा पर बेस्ड है.मुस्लिम आशु शौकीन (विक्रांत मेस्सी )और हिंदू ज्योति( सान्या मल्होत्रा) की है.जो एक दूसरे के प्यार में है लेकिन ज्योति का रसूखदार परिवार इस प्यार के खिलाफ है लेकिन दोनों प्रेमी जोड़े बिना किसी की परवाह किए कोर्ट में जाकर शादी कर लेते हैं और कोर्ट उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें रिफ्यूजी शेल्टर भेज देता है. जहां की पुलिस उन्हें लव होस्टल कहती है.
ज्योति की रसूखदार दादी कहाँ चुप बैठने वाली है.खाप पंचायत की हिमायती दादी कॉन्ट्रैक्ट किलर डागर (बॉबी देओल) को उनकी सुपारी देती है.डागर खुद को समाज सुधारक मानता है और ऐसी प्रेमी जोड़ियां जिन्होंने अपने धर्म और जाति को ताक पर रखकर शादी करती हैं उसे मारना अपना कर्तव्य समझता है. उसके बाद शुरू हो जाती है मौत का खूनी खेल.क्या होगा ज्योति और आशु का. इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी.
कहानी के सब प्लॉट्स में दूसरे मुद्दों को भी उठाया गया है जैसे मुस्लिम है तो उसे आतंकवादी बनाना आसान है.पुलिस और जुर्म के कनेक्शन को भी फ़िल्म में बखूबी हाईलाइट किया गया है.समलैंगिक संबंध और बीफ का मुद्दा सरसरी तौर पर ही सही फ़िल्म में उठाया गया है.
खामियों की बात करें तो फ़िल्म शुरुआत में जिस दहशत और टेंशन को बनाती है वो आखिर तक नहीं रह पाती है. फ़िल्म की कहानी में ट्विस्ट एड टर्न की कमी है. आखिर में एक ट्विस्ट है. इसके साथ ही बॉबी देओल का किरदार जिस तरह से हर जगह लोगों की हत्याएं करता फिरता है . वह भी थोड़ा अजीब सा लगता है.
अभिनय की बात करे तो यह फिल्म पूरी तरह से बॉबी देओल के कंधों पर टिकी हुई है. उनके किरदार डागर के ज़रिए ही कहानी आगे बढ़ती है ।डागर का नकारात्मक किरदार बॉबी ने बहुत ही प्रभावी ढंग से निभाया है. फ़िल्म में मुश्किल से उनको दो-तीन डायलॉग्स मिले हैं लेकिन वे अपने पावरफुल एक्सप्रेशंस से ही अपने किरदार को खतरनाक बना जाते हैं.सान्या और विक्रांत मेस्सी हमेशा की तरह से एक बार अपने किरदार में रचे बसे नजर आए उनकी नोकझोंक वाली केमिस्ट्री इस फिल्म को और खास बनाती है. बाकी के किरदारों को फिल्म में ज्यादा स्कोप नहीं मिला गया है लेकिन सभी अपनी सीमित स्क्रीन स्पेस में अपने अभिनय से न्याय करते हैं.
फ़िल्म का गीत संगीत कहानी कहानी के अनुरूप है.फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी भी कहानी से जुड़े टेंशन को बयां करती है.फ़िल्म में ज़्यादातर डार्क टोन लाइट्स का इस्तेमाल किया गया है.