साराभाई वर्सेज साराभाई की जैस्मीन उर्फवैभवी उपाध्याय का कार एक्सीडेंट में निधन हो गया. उनकी कार को ट्रक ने टक्कर मार दी थी. वहीं हादसे के वक्त वैभवी ने सीट बेल्ट भी नहीं पहनी थी. जिसके कारण उन्हें सिर में काफी चोटें आई. अब उनके भाई अंकित ने पूरी कहानी बताई. उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया से भारत पहुंचने तक मॉम-डैड को नहीं बताया गया था कि वैभवी अब चल बसीं.
अंकित को ऐसे मिली वैभवी की मौत की खबर
अंकित ने ई-टाइम्स से बात करते हुए कहा, सब तब शुरू हुआ, जब मुझे हिमाचल प्रदेश में पुलिस का फोन आया. उन्होंने कहा कि मेरी बहन वैभवी की सड़क हादसे में मौत हो गई थी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था. मैं सन्न रह गया. मुझे बताया गया कि एक भारी वाहन ने उनके वाहन को टक्कर मार दी थी, और उसकी कार एक खाई (घाटी) में गिर गई थी. मेरी बहन को कार के बाहर फेंक दिया गया. स्थानीय लोग इकट्ठे हो गए और उसे तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन पहुंचने पर डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. इस बीच, कार चला रहे उनके मंगेतर जय गांधी कुछ मिनटों तक फंसे रहे, जब तक कि कुछ और स्थानीय लोग उन्हें कार से बाहर निकालने के लिए इकट्ठा नहीं हो गए. जय को बाहर आने के लिए शीशा तोड़ना पड़ा.
वैभवी ने लगा रखी थी सीट बेल्ट
अंकित ने आगे कहा कि जय तेज गाड़ी नहीं चला रहा था. वे नशे में भी नहीं थे और आपको बता दें कि वैभवी ने सीटबेल्ट पहन रखी थी. पोस्टमॉर्टम से साफ पता चला कि उसके शरीर पर ऐसे निशान थे, जिससे पता चलता है कि सीट बेल्ट बांधी गई थी. कार के पलटने पर उसका सीटबेल्ट स्पष्ट रूप से टूट गया होगा. जय ने भी सीट बेल्ट लगा रखी थी. वैभवी की पसलियों में चोट लगी थी और उनके फेफड़े और लीवर फट गए थे. इसका असर दिल पर पड़ा होगा क्योंकि लिवर और फेफड़ों से खून दिल में बहना बंद हो गया होगा.
शिमला जाने वाले थे वैभवी और उनके मंगेतर
अंकित ने बताया कि उनकी बहन और मंगेतर वास्तव में तीर्थम जाने वाले थे लेकिन वह किसी कारण से बंद था. जिस होटल में वे उस समय जिभी में ठहरे हुए थे, वहां से किसी ने उन्हें मनाली जाने की सलाह दी क्योंकि रास्ते में बर्फबारी हो रही थी. हादसे के समय वे मनाली जा रहे थे. मनाली से उन्हें वापस मुंबई आना था. वैभवी और जय ने 15 मई को मुंबई से निकले थे. मैंने आखिरी बार वैभवी से 21 मई रविवार को बात की थी. वे कार से पूरे रास्ते उत्तर की ओर गए थे.
अंकित ने बहन को बताया जिंदादिल
अंकित ने आगे कहा कि मेरी मां वैभवी को देखने में सक्षम नहीं है. वह कमजोर है. मेरे पिता एक बहादुर मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हम अभी भी इसे संसाधित नहीं कर पाए हैं. मुझे लगता है कि एक या दो दिन बाद ही हम समझ पाएंगे कि हमने क्या खोया है. वैभवी बहुत जिंदादिल इंसान थीं. इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो उसे जानता हो और पसंद नहीं करता हो. वह बहुत अच्छी इंसान थीं.