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Friday, March 29, 2024

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Ray Review: मानव मन की गहराइयों में उतरती इस एंथोलॉजी में… मनोज बाजपेयी लूट ले गए महफिल

फ़िल्म - रे प्लेटफार्म-नेटफ्लिक्स निर्देशक- श्रीजीत मुखर्जी, वसन बाला और अभिषेक चौबे कलाकार-मनोज बाजपेयी, गजराज राव, हर्षवर्द्धन कपूर, के के मेनन,अली फजल,रघुबीर यादव, श्वेता बासु प्रसाद,राधिका मदान, मनोज पाहवा और अन्य रेटिंग - साढ़े तीन

फ़िल्म – रे

प्लेटफार्म-नेटफ्लिक्स

निर्देशक- श्रीजीत मुखर्जी, वसन बाला और अभिषेक चौबे

कलाकार-मनोज बाजपेयी, गजराज राव, हर्षवर्द्धन कपूर, के के मेनन,अली फजल,रघुबीर यादव, श्वेता बासु प्रसाद,राधिका मदान, मनोज पाहवा और अन्य

रेटिंग – साढ़े तीन

Ray review : बहुमुखी प्रतिभाशाली फिल्मकार सत्यजीत रे की एक पहचान सफल लेखक की भी रही है. यह वर्ष उनकी जन्मशताब्दी वर्ष है इसलिए नेटलिक्स उनकी लिखी कहानियों की एंथोलॉजी के तौर पर लेकर आया है रे. एंथोलॉजी मौजूदा वक्त का लोकप्रिय ट्रेंड बनता जा रहा है. जिसमें एक साथ तीन से चार अलग अलग कहानियों को एक साथ पिरोकर दिखाया जाता है. इस एंथोलॉजी में चार कहानियां हैं.

इस एंथोलॉजी सीरीज की शुरुआत फॉरगेट मी नॉट से होती है. इसका निर्देशन श्रीजीत मुखर्जी ने किया है. अली फजल और श्वेता प्रसाद बासु अभिनीत इस एक घंटे की कहानी इप्सित ( अली फजल)की है. जो अपनी ज़िंदगी में बहुत ही कामयाब है. पर्सनल और प्रोफेशनल सभी में वो पूरी तरह से सेटल है. उसे अपनी मेमोरी पर घमंड है. वो कुछ भी नहीं भूलता है लेकिन एक दिन एक लड़की उसे मिलती है. जो उसे अपने साथ गुजारे वक़्त की याद दिलाती है. जो उसे याद ही नहीं है . उसके बाद वह चीज़ें भूलने लगता है और हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि वह पागलखाने पहुंच जाता है.

श्रीजीत दूसरी फिल्म बहुरूपिया के भी निर्देशक हैं. बहुरूपिया एक मेकअप मैन इन्द्रशिष ( के के मेनन) की कहानी है. ये मुखौटे उसके प्रतिशोध का सहारा बनते हैं लेकिन जब वह खुद को खुदा समझने लगता है उसे लगता है कि वह अपनी किस्मत खुद अब लिख सकता है तो फिर वही मुखौटा उसका पतन भी कर देता है.

तीसरी कहानी हंगामा क्यों है बरपा है. मुसाफिर अली (मनोज बाजपेयी)और असलम बेग(गजराज राव) की है. उनकी मुलाकात ट्रेन में होती है. असलम को मुसाफिर अली को देखकर लगता है कि वो पहले भी मिले हैं. मुसाफिर अली को याद आता है कि दस साल पहले ट्रेन में ही उनकी मुलाकात हुई थी. उस सफर में उन्होंने असलम बेग की खूबसूरत घड़ी खुदाबक्श को चुरा ली थी. जिससे मुसाफिर अली के अच्छे दिन आ गए और मुसाफिर अली का बुरा वक्त शुरू हो गया. मुसाफिर अली को अपनी गलती का एहसास होता है फिर क्या होता है वो शानदार ट्विस्ट लिए है.

चौथी कहानी निर्देशक वसन बाला की स्पॉटलाइट अभिनेता विक (हर्षवर्धन कपूर) की है. जो अपने लुक की वजह से अपने फैंस में मशहूर है सबकुछ उसकी ज़िन्दगी में ठीक है लेकिन एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान जब एक होटल में उससे ज़्यादा धर्मगुरु दीदी को महत्व मिलता है तो उसके अहंकार को ठेस पहुँच जाता है . उसकी ज़िन्दगी में सबकुछ बुरा होने लगता है वो इसके लिए दीदी को जिम्मेदार समझने लगता है फिर उसकी मुलाकात दिव्य दीदी से होती है. जो खुद उसकी प्रशंसक है फिर कहानी में आगे क्या होगा इसके लिए एंथोलॉजी देखनी होगी.

सत्यजीत रे की बंगाल की कहानियों को कंटेम्पररी अंदाज़ में दिखाया गया है ताकि वो सभी दर्शक वर्ग को अपील कर सकें. कुलमिलाकर नए कलेवर में पुरानी कहानियों को ढालने का बेहतरीन उदाहरण है निर्देशकों ने हर कहानी में अपने क्रिएटिविटी को बखूबी दर्शाया है. फिर चाहे किरदारों के मन के साथ हो या परिस्थितियों के साथ. मानव मन के अलग अलग भावों को यह एंथोलॉजी गहरायी से दिखाती है. कहानी और किरदार काम्प्लेक्स हैं लेकिन वे एंगेजिंग हैं.

सभी कहानियां बढिया हैं. उनका अंत उन्हें और भी रोचक बनाता है लेकिन इन चारों कहानियों में आखिरी की जो दो कहानियां है हंगामा क्यों है बरपा और स्पॉटलाइट की विशेष तारीफ करनी होगी. खासकर हंगामा क्यों है बरपा की. फ़िल्म की कास्टिंग,संवाद से लेकर हर फ्रेम तक बहुत ही दिलचस्प है . इस फ़िल्म का ट्रीटमेंट शानदार है. ट्रेन के सफर में महफिलों के सीन्स बहुत ही खूबसूरती से जोड़े हैं. जो मुसाफिर अली की शोहरत की कहानी को बयां करने के साथ साथ फ़िल्म में हास्य रंग भी जोड़ते हैं.

खामियों की बात करें तो इस एंथोलॉजी चार घंटे की है. हर एपिसोड लगभग एक घंटे का है. समय अवधि 5 से 10 मिनट कम की जा सकती थी लेकिन इसके बावजूद यह फ़िल्म आपको बांधे रखती है. रे की इन चारों कहानियों में पुरुष पात्र ही केंद्र में हैं लेकिन बाजी मनोज बाजपेयी के हाथ लगी है. एक बार फिर उन्होंने बेहद उम्दा काम किया है. वे फ़िल्म में ग़ज़ल गायक हैं और जिस तरह से उन्होंने ग़ज़ल गायक की भूमिका को आत्मसात है. वह आपको वाह वाह करने को मजबूर कर देगा. गजराज राव ने उनका बखूबी साथ दिया है. दोनों की केमिस्ट्री लाजवाब रही है.

अली फजल और के के मेनन का अभिनय भी सराहनीय है तो हर्षवर्धन कपूर को एंथोलॉजी की फ़िल्म स्पॉटलाइट में अच्छा मौका दिया गया है जिस पर वो खरे भी साबित हुए हैं. रघुबीर यादव अपनी छोटी सी भूमिका में भी छाप छोड़ जाते हैं तो चंदन रॉय सान्याल और दिब्येंदु भी अपनी उपस्थिति दर्शाने में कामयाब हुए हैं. महिला पात्रों में श्वेता बासु प्रसाद और राधिका मदान ने भी शानदार काम किया है. बिदिता को फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था. कुलमिलाकर सत्यजीत रे की कालजयी कहानियां दिग्गज कलाकारों,उम्दा निर्देशन और योग्य तकनीकी टीम ने साहित्य और सिनेमा के इस मेल को खास बना दिया है.

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