राजामौली निर्देशित और प्रभास स्टारर फिल्म छत्रपति का हिंदी रिमेक इस शुक्रवार सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रहा है. इस फिल्म से तेलुगु एक्टर बेलमकोंडा श्रीनिवास हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत करने जा रहे हैं. उनकी इस फिल्म, साउथ फिल्मों और कैरियर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत...
हिंदी दर्शकों के साथ आप छत्रपति फिल्म से जुड़ने वाले हैं, क्या नर्वस हैं?
मैं जब भी किसी फिल्म से जुड़ता हूं, तो उसे अपनी पहली ही फिल्म समझता और अपना पूरा 100 प्रतिशत देता हूं. वैसे हिंदी दर्शकों ने मेरा काम देखा है. मेरी तेलुगु फिल्म सैटेलाइट रिलीज में हिंदी डब होकर आयी थी खूंखार नाम से, तो लोगों ने इसे बहुत पसंद किया था. उस फिल्म को 10 मिलियन व्यूज यूट्यूब पर मिले थे. जो की बहुत बड़ी बात थी. हिंदी के दर्शकों ने मेरा काम देखा है. उनलोगों से जुड़ने का यह अगला स्टेप है, जो मैं छत्रपति कर रहा हूं.
साउथ की ही फिल्म का हिंदी रिमेक छत्रपति है, क्यों उसी फिल्म को आपने रिमेक के लिए चुना?
वो 2005 की फिल्म है. यहां के दर्शकों के लिए वह फिल्म नयी है. राजामौली सर और प्रभास की फिल्म को मैं एक अलग अनुभव के साथ दर्शकों को देना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि दर्शक थिएटर में सिनेमा को एन्जॉय करें. इसे एक सेलिब्रेशन की तरह एन्जॉय करें. मैं तीन चीज़ों में यकीं करता हूं. सिनेमा, क्रिकेट और पॉलिटिक्स इन तीनों चीज़ों से आप दूर हैं, तो फिर आप भारतीय नहीं हैं. सिनेमा तो अनुभव का नाम है ,जिसका असल मज़ा थिएटर में है.
क्या कुछ बदलाव भी हुए हैं?
उस फिल्म को बीस साल हो गए हैं, तो फिल्म के ट्रीटमेंट में बदलाव ज़रूरी है. कहानी वही है, लेकिन एक्शन और ड्रामा बहुत अलग है. फिल्म को एक बड़े स्केल पर शूट किया है. जिससे दर्शकों के लिए थिएटर में यह एक अनुभव साबित होगी.
अपनी बॉडी पर कितना काम किया है?
अपने फिजिक पर बहुत काम किया. मैं हर दिन ग्रिल्ड फिश, चिकन और उबले अंडे ही खाता था. बॉडी को मैंने तीन से चार महीने में बना लिया था, लेकिन उसको बरक़रार रखना सबसे मुश्किल था. लॉकडाउन की वजह से इस फिल्म की शूटिंग रुक गयी थी, लेकिन मेरी बॉडी तो बन गयी थी. कब शूटिंग शुरू करना पड़ वो भी मालूम नहीं था. इसलिए फिजिक को मेन्टेन रखना ज़रूरी था. इसके लिए मुझे खाने से दूर रहना पड़ता था. एक हैदराबादी को खाने से दूर रखना और मुश्किल है , कबाब, हलीम, ईरानी चाय, बन मस्का को कैसे मना कर पाएंगे. लॉकडाउन में मेरे दोस्त जमकर ये सब खा रहे हैं. आर्डर कर रहे हैं और मैं बस उनको देखता था.
कोविड की वजह से फिल्म को कितना लम्बा इंतज़ार करना पड़ा?
हमने तीन दिन ही शूटिंग की थी और दूसरा लॉकडाउन आ गया था. जब चीज़ें शुरू हुई, तो भी उस वक़्त छोटे क्रू के साथ ही आप शूट कर सकते थे और मैं 70 लोगों के क्रू के साथ इस फिल्म को शूट नहीं कर सकता था, क्योंकि मैं दर्शकों को सबसे बेस्ट अनुभव देना चाहता था. जिस वजह से फिल्म डेढ़ साल रुकना पड़ गया.
फिल्म का सबसे मुश्किल सीन क्या था?
इंटरवल के पहले और क्लाइमेक्स सीन बहुत ही चुनौतीपूर्ण था. इंटरवल वाले सीन को करने में तो बीस से बाइस दिन गए. यह फिल्म शारीरिक तौर पर मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण थी. यही वजह है कि जब फिल्म ख़त्म हुई तो मैंने घर पर दस दिन आराम किया. मैं कहीं बाहर नहीं गया. इसकी वजह कहीं ना कहीं कोविड भी था. मास्क और ये नियम वो टेस्ट इन सबके बीच में शूटिंग ही नहीं, बल्कि जिम जाना भी एक टास्क क़ी तरह था. एक अजीब सा माहौल होता था. उसमें काम करना आसान नहीं था.
हिंदी सिनेमा में आपकी पसंदीदा फ़िल्में और निर्देशक कौन से रहे हैं?
दिल चाहता है, कभी ख़ुशी कभी गम मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्में हैं. जोया अख्तर , राजकुमार हिरानी, संजय लीला भंसाली और रोहित शेट्टी ऐसे फिल्म मेकर्स हैं , जिनकी फिल्में मैं फर्स्ट डे फर्स्ट शो ज़रूर जाता हूं.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और साउथ इंडस्ट्री में काम के तरीके में सबसे बड़ा फर्क क्या पाते हैं?
शूटिंग जैसा ही मुझे यहां फिल्म का प्रमोशन लग रहा है. सुबह से शाम तक प्रमोशन ही हो रहे हैं. वहां पर तो फिल्म की डबिंग के बाद फिल्म से मैं दूर हो जाता हूं. हमारे यहाँ ट्रेलर भी डायरेक्ट यूट्यूब पर लॉंच करते हैं. हां एक बड़ा प्रेस मीट करते हैं , जैसे अवार्ड फंक्शन के तर्ज पर एकदम बड़ा. उसमें फिल्म के सारे गाने बजते हैं और परफॉरमेंस भी होता है. यहाँ सौ दिन का प्रमोशन भी होता है.
आपकी हिंदी भाषा कैसी है?
मैंने हिंदी में डबिंग नहीं क़ी है, लेकिन मैं लिख भी सकता हूं और पढ़ भी सकता हूं क्योंकि स्कूल में ये मेरा सेकेंड लैंग्वेज था. बोलने क़ी प्रैक्टिस अच्छी नहीं है.
साउथ की फ़िल्में इन-दिनों हिंदी फिल्मों से ज्यादा सराही जा रही हैं, इसकी वजह आप क्या मानते हैं?
हमारी कहानियां जमीन से जुड़ी रहती हैं और सिनेमा को हम एक अनुभव क़ी तरह पेश करते हैं. हम एक्टर्स कम पैसे लेते हैं, और ज्यादा फिल्म में लगाते हैं. यहां उल्टा है. वहां पर सबकी सोच यही रहती है कि हम सबसे सिनेमा बड़ा है.हम सिनेमा क़ी बहुत इज़्ज़त करते हैं, क्योंकि वह हमको काम दे रहा है. खाना दे रहा है और पैसा दे रहा है.हमको जो कुछ भी जिंदगी में चाहिए वो सिनेमा ही दे रहा है, तो सिनेमा से बड़ा कुछ नहीं है.
अपनी अब तक की फिल्म जर्नी को किस तरह से परिभाषित करेंगे?
मेरे पिता फिल्म निर्माता रहे हैं, इसलिए सभी आसानी से मुझे नेपो किड कह सकते हैं, लेकिन मेरा संघर्ष बहुत रहा है. मैंने 20 साल की उम्र में साउथ की फिल्मों में शुरुआत की थी. मेरी पहली ही फिल्म से मैंने बेस्ट डेब्यू एक्टर का अवार्ड जीत लिया था, लेकिन फिर मैंने डेढ़ साल तक कोई फिल्म नहीं की, क्योंकि मेरा परिवार बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा था. मेरे पिता निर्माता थे. उन्होने बहुत भारी घाटा हो गया था, मैंने डेढ़ साल तक कोई फिल्म नहीं की, लेकिन मैं इस बात को जानता था कि यही इंडस्ट्री है, जहां पैसा लगाए बिना पैसा कमाया जा सकता है, लेकिन उस वक़्त कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं था. खूंखार फिल्म के निर्देशक ने मुझ पर पैसा लगाया. सिर्फ इतना कहा कि स्टार बनने के बाद याद रखना. अगर मेरी वह फिल्म हिट नहीं होती तो मैं खत्म था, लेकिन वो मेरी फिल्म हिट हुई और मैंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
इतनी छोटी में अचानक से आर्थिक संकट से डील करना कितना मुश्किलों भरा था?
सिर्फ 21 साल का था, जब ये सब हुआ था. मन में ये सवाल रहता था कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ, लेकिन मैं अपने परिवार विशेषकर अपने छोटे भाई के सामने कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता था. मैं चाहता था कि मेरे घरवालों का मुझे पर यकीन रहे कि मैं सब ठीक कर दूंगा. हमारा एक रहन-सहन था. जो पैसे जाने के बाद नहीं रह गया था, उसको देखकर मुझे बहुत दुख लगता था, लेकिन मैंने कुछ साल लिए सबकुछ पहले जैसा फिर से कर दिया.
आपकी आनेवाली फिल्म
हिंदी और साउथ फिल्मों में बैलेंस करना चाहूंगा. अगली फिल्म साउथ की होगी.