।। उर्मिला कोरी।।
फिल्म: हवा हवाई
निर्देशक : अमोल गुप्ते
निर्माता: फॉक्स स्टार स्टूडियो
कलाकार: पार्थो, साकिब सालेम,प्रज्ञा यादव, मकरंद देशपांडे और अन्य
रेटिंग: तीन
स्टेनली का डब्बा के बाद पिता- पुत्र की जोड़ी अमोल गुप्ते और पार्थो एक बार फिर रुपहले परदे पर वापस आ गयी है. जहां चाह है वहां राह है अमोल गुप्ते की फिल्म हवा हवाई इसी बात को दोहराती हैं. अर्जुन वाघमारे (पार्थो)एक गरीब लड़का है जो अपने परिवार के भरण पोषण के लिए एक चाय की दुकान में दिन भर काम करता है और रात में स्केटिंग सीखता है. शुरुआत में वह एकलव्य की तरह अपने स्केटिंग गुरू लकी(साकेब) को फॉलो करता है लेकिन जल्द ही लकी अर्जुन वाघमारे की काबिलियत को जान लेता है और वह उसे चैंपियन बनाने में जुट जाता है लेकिन चैंपियन बनने के लिए सिर्फ जुनून और जोश की जरुरत नहीं होती है बल्कि रोटी भी अहमियत होती है. भूखे पेट चैंपियन नहीं बना जा सकता है.
अर्जुन चैंपियनशिप के ऐन मौके पर भुखमरी की वजह से बीमार पड़ जाता है और अस्पताल में भर्ती हो जाता है तब लकी यह बात समझता है कि अगर अर्जुन यह चैंपियनशिप जीत भी लेगा तो उसे अपने परिवार के लिए चाय की दुकान में ही काम करना पड़ेगा. जिसके बाद लकी तय करता है कि वह अर्जुन और उसके चार दोस्तों की जिंदगी संवारेगा. क्या लकी अर्जुन को स्केटिंग का चैंपियन बना पाएंगा. इसी के इर्द गिर्द फिल्म की कहानी घूमती है. फिल्म की कहानी में दृश्यों का संयोजन बहुत ही खूबसूरती से किया गया है. अर्जुन के स्केटिंग की चैंपियनशिप वाली दौड़ और उसके पिता की मौत वाला दृश्य बहुत ही बेहतरीन तरीके से मिलाया गया है. यह एक स्पोर्ट्स फिल्म नहीं बल्कि इंसानी भावना और उसके जुड़ाव की कहानी है.
यह फिल्म बाल मजदूरी, विदर्भ में किसानों के आत्महत्या करने सहित कई मुद्दों पर अपने अंदाज में प्रकाश डालती है. अमोल गुप्ते ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह बच्चों की भावानाओं को बहुत ही अच्छे से समझते हैं. उन्होंने उसे परदे पर बखूबी उतारा है. फिल्म के सभी बच्चे खास है. उनके साथ सभी दृश्यों का संयोजन बेहतरीन तरीके से किया गया है. अभिनय के मामले में सभी कलाकार अपने किरदार में सटीक बैठे हैं. फिल्म का गीत संगीत फिल्म के अनुकूल ही है. जो कहानी को आगे बढ़ाने और समझाने में मदद ही करते हैं. कुल मिलाकर यह एक फील गुड़ फिल्म है.