भूतनाथ रिटर्न्स भूतनाथ की सीक्वल फिल्म सिर्फ इस लिहाज से है कि फिल्म में भूतनाथ के पहले संस्करण के बंकू की चर्चा इस फिल्म में भी होती है. साथ ही भूतनाथ भूत वर्ल्ड में जा चुका है. लेकिन उसे दोबारा एक भूल को सुधारने के लिए वापस भेजा गया है. इस फिल्म का नाम भूतनाथ रिटर्न्स है. लेकिन फिल्म में भूत की नहीं, बल्कि भविष्य की बात की गयी है. जी हां, फिल्म के निर्देशक नितेश तिवारी ने चुनावी माहौल में एक महत्वपूर्ण फिल्म बनायी है. यह फिल्म किसी पार्टी विशेष का महिमामंडन या गुणगान नहीं गाती और न ही भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को उठा कर भाषणबाजी करने की कोशिश करती है. निर्देशक की मनसा बिल्कुल स्पष्ट है कि उन्हें दर्शकों को सिर्फ यह बताना है कि आप वोट करें.
भारत का लोकतांत्रिक ढांचा कैसा है, उनकी क्या त्रूटियां हैं और क्या कमियां हैं. ये यह फिल्म उजागर करती है. नितेश की विषय पर कितनी अच्छी पकड़ है. यह इसी बात से नजर आ जाती है कि उन्होंने किस तरह अपनी स्क्रिप्ट में सूझ बूझ से मुद्दों को दिखाया है. निर्देशक की दर्शकों से यही अपील है कि आप वोट करें तो सही और सच्चे को वोट दें. साथ ही नन ऑफ द एवॉव यानि नोटा का क्या महत्व है. यह भी जताने की कोशिश की है. एक भूत क्यों भारत में चुनाव लड़ सकता. अन्य देशों में अगर जनता अपने नेता का चुनाव नहीं करती तो कार्टून का चुनाव क्यों करती है. और क्यों कर सकती. ऐसी कई आवश्यक जानकारियां देती है यह फिल्म. फिल्म में व्यंगात्मक तरीके से कई जरूरी बातें कहने की कोशिश की गयी है. आपका वोट करना और न करना और किस तरह आपके मत का गलत इस्तेमाल होता है. किस तरह जो मर चुके हैं. उनके नाम पर आज भी वोटिंग हो रही है.
ऐसे कई आवश्यक सूचनाएं देती है यह फिल्म. नीतेश की यह फिल्म बिल्कुल सही समय पर दर्शकों के सामने आयी है. फिल्म देखने के बाद एक बार आप खुद को खंगालने की कोशिश जरूर करेंगे कि हम वोट क्यों नहीं देते और वोट के लिए वोटर आइडी जैसी चीजों का ख्याल क्यों नहीं करते. फिल्म में भूत का चुनाव लड़ा जाना भी एक नया और अलग सोच है.
हिंदी फिल्मों में बच्चों के लिए कम फिल्में बनती हैं और कम ही निर्देशक बड़ों और बच्चों की कहानी में दोनों को मद्देनजर रखते हुए समन्वय बिठा पाते हैं.नितेश इसमें माहिर हो चुके हैं. उन्होंने इससे पहले चिल्लर पार्टी का निर्देशन किया था. उस फिल्म में भी बच्चों के खेल खेल में एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश था. यह फिल्म भी उस लिहाज से खरी उतरती है. एक बच्चे और भूत की दोस्ती की भावनात्मक कहानी में यह फिल्म कब चुनाव जैसे गंभीर मुद्दों पर चली आती है पता नहीं चलता. इस फिल्म की एक खासियत यह भी है कि फिल्म में अतिथि भूमिका निभाने वाले कलाकार रणबीर कपूर, शाहरुख खान और अनुराग कश्यप भी फिल्म की कहानी के महत्वपूर्ण किरदारों की तरह नजर आते हैं. फिल्म में एक संवाद है कि आप मुङो भूत न समङों. मैं भविष्य हूं..भूतनाथ इस माध्यम से जताने की कोशिश करता है कि भविष्य क्या है. अखरोट भूतनाथ से कहता है कि तेरे वक्त और अभी के वक्त में काफी फर्क आ गया है. महंगाई बढ़ गयी है. इससे लगातार हर वर्ष बढ़ रही महंगाई जैसे मुद्दे की जानकारी भी निर्देशक एक संवाद में दे जाता है.
फिल्म के कुछ बेहतरीन पंच हैं और निश्चित तौर पर इस फिल्म की नकल राजनैतिक नेता करेंगे. फिल्म में भूतनाथ का किरदार अमिताभ बच्चन ने निभाया है. इस फिल्म को वाकई अमिताभ बच्चन जैसे विश्वसनीय चेहरे की ही जरूरत थी. चूंकि फिल्म एक अपील है. जाहिर सी बात है जब अमिताभ के मुख से वे बातें दर्शकों तक पहुंच रही हैं तो इसका प्रभाव गहरा और गंभीर होगा. अमिताभ और अखरोट के रूप में पार्थ जिस तरह परदे पर भावनात्मक के साथ साथ हास्य समAव्य बिठा पाते हैं. वह अदभुत है. पार्थ मंङो कलाकार नजर आ रहे हैं. उनके डांसिंग स्टेप में भी उनकी परिपक्वता नजर आ रही है. आनेवाले समय में उन्हें सही निर्देशक मिले तो वे इरफान नवाजुद्दीन के पथ पर चलनेवाले कलाकारों में से एक होंगे.
अमिताभ बच्चन इतने सालों के बावजूद जो भूख अपने अभिनय में लेकर आते हैं. दर्शकों को वह लुभाता है. फिल्म शोले में जय और वीरू की दोस्ती जैसे लोकप्रिय होती है. अमिताभ भूतनाथ के रूप में अखरोट से वैसी ही दोस्ती निभाते नजर आते हैं. बोमन ईरानी भाउ के रूप में बेहतरीन नजर आये हैं. उन्होंने कम संवादों में केवल अपने हाव भाव से प्रभावित किया है. संजय मिश्र हिंदी फिल्मों के महत्वपूर्ण कलाकार हैं. वे अपनी छोटी भूमिका में भी दर्शकों को लुभाते हैं. उनका ठेठपन और उनका अंदाज हर फ्रेम में आपको प्रभावित करता है. फिल्म देख कर आप हंसेंगे, रोयेंगे और खुद को टटोलेंगे. ट्रेलर में जो हमने और आपने देखा है. वह बेमानी नहीं है. देख आये फिल्म. देश की फिक्र है तो वोट करें और भूतनाथ रिटर्न्स जरूर देखें.