Delhi University Syllabus: DU के नए सिलेबस में हुआ बड़ा बदलाव, इस महान हस्ती की कविताएं की गईं शामिल
Delhi University syllabus: दिल्ली यूनिवर्सिटी ने PG अंग्रेजी पाठ्यक्रम में अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं शामिल की हैं. इस फैसले पर शिक्षाविदों के बीच मतभेद सामने आए हैं. कुछ सदस्यों ने साहित्यिक गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं. साथ ही अन्य विषयों के सिलेबस में भी बदलाव किए गए हैं.

Delhi University Syllabus in Hindi: दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अपने अंग्रेजी साहित्य के पोस्टग्रेजुएट (PG) पाठ्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को शामिल किया है. यह बदलाव पहले सेमेस्टर के ‘पोस्ट-इंडिपेंडेंस इंडियन लिटरेचर्स’ नामक पेपर में किया गया है. यह फैसला विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की हाल ही में हुई बैठक में लिया गया.
वाजपेयी न सिर्फ एक बड़े नेता रहे हैं, बल्कि एक भावुक कवि के रूप में भी पहचाने जाते हैं. उनकी कविताओं में देशभक्ति, संस्कृति और परंपरा की झलक साफ देखी जा सकती है. उनकी मशहूर पंक्तियां, “कदम मिलाकर चलना होगा”, “गीत नया गाता हूं” और “आओ मिलकर दिया जलाएं”. आज भी लोगों की जुबान पर हैं.
कार्यकारी परिषद के कुछ सदस्यों ने किया विरोध
इस फैसले पर कुछ शिक्षकों और परिषद के सदस्यों ने आपत्ति जताई है. परिषद के सदस्य रुद्राशीष चक्रवर्ती ने कहा कि वाजपेयी की कविताओं में वह साहित्यिक स्तर नहीं है, जो अंग्रेजी के PG पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाए. उन्होंने कहा कि धूमिल, निराला और मुक्तिबोध जैसे कवि उस दौर की कविता को बेहतर तरीके से दर्शाते हैं. उनका कहना है कि राजनीतिक भावनाओं से भरी रचनाओं को सिलेबस में शामिल करना ठीक नहीं है.
एक अन्य सदस्य सुनील शर्मा ने कहा कि कार्यकारी परिषद का काम सिर्फ सिफारिशों को मंजूरी देना है. उन्होंने कहा, “सिलेबस तय करने का अधिकार अकादमिक परिषद को है. बैठक में पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु पर चर्चा नहीं हुई. ”
Delhi University Syllabus: समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के सिलेबस में भी बदलाव
बैठक में समाजशास्त्र (Sociology) और मनोविज्ञान (Psychology) विभाग के पाठ्यक्रमों में बदलाव को भी मंजूरी दी गई. इसके अलावा पत्रकारिता (Journalism) और परमाणु चिकित्सा (Nuclear Medicine) जैसे नए कोर्स भी शुरू किए गए हैं.
DU के इस फैसले को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. एक ओर इसे अटल जी की साहित्यिक पहचान को मान्यता देने वाला कदम बताया जा रहा है, तो दूसरी ओर कुछ शिक्षकों का कहना है कि यह साहित्य की गुणवत्ता के साथ समझौता है. अब देखना यह है कि छात्रों और शिक्षकों के बीच इस बदलाव को किस तरह से स्वीकार किया जाता है.