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Union Budget 2023 : रेगुलेशन में सरलीकरण और रिसर्च आधारित प्रोत्साहन चाहता है फार्मा सेक्टर

केंद्रीय बजट 2023 में उद्योग की अपेक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए भारतीय फार्मास्युटिकल गठबंधन (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि घरलू फार्मा इंडस्ट्रीज का आकार फिलहाल 50 अरब डॉलर का है और इसके 2030 तक 130 अरब डॉलर और 2047 तक 450 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.

नई दिल्ली : लोकसभा में केंद्रीय बजट 2023 के पेश होने में अब केवल 10 दिन शेष रह गए हैं. विशेषज्ञ, उद्योग जगत और आम जनता की सलाह, सुझाव, मांग और उम्मीदें मीडिया के माध्यम से सरकार तक पहुंच रही हैं. फार्मा सेक्टर के विभिन्न संगठनों ने भी सरकार से उम्मीद जाहिर की है. समाचार एजेंसी भाषा की खबर के अनुसार, भारत के फार्मा इंडस्ट्री के विभिन्न संगठनों ने सरकार से उम्मीद जताई है कि केंद्रीय बजट 2023 में सरकार नवोन्मेषण के साथ शोध एवं विकास पर ध्यान देते हुए फार्मा सेक्टर के लिए रेगुलेशन (नियमन) के सरलीकरण के लिए कदम उठाएगी.

2047 तक 450 अरब डॉलर का हो जाएगा फार्मा सेक्टर

केंद्रीय बजट 2023 में उद्योग की अपेक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए भारतीय फार्मास्युटिकल गठबंधन (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि घरलू फार्मा इंडस्ट्रीज का आकार फिलहाल 50 अरब डॉलर का है और इसके 2030 तक 130 अरब डॉलर और 2047 तक 450 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्रीय बजट 2023-24 नवाचार और शोध एवं विकास को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए, जिससे फार्मा उद्योग को आगे बढ़ने के लिए गति मिल सके. आईपीए सनफार्मा, डॉ रेड्डीज लैब, अरविंदो फार्मा, सिप्ला, ल्यूपिन और ग्लेनमार्क समेत 24 घरेलू फार्मा कंपनियों का गठबंधन है.

राजकोषीय प्रोत्साहन और अनुकूल नीतियां जरूरी

भारतीय फार्मास्युटिकल उत्पादक संगठन (ओपीपीआई) के महानिदेशक विवेक सहगल ने कहा कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ में वास्तविक योगदान के लिए जीवन-विज्ञान क्षेत्र को सक्षम बनाने के लिए सरकार को राजकोषीय प्रोत्साहन और अनुकूल नीतियां बनाने की जरूरत है. ओपीपीआई शोध आधारित फार्मा कंपनियों एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन और मर्क और अन्य का प्रतिनिधित्व करता है.

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रिसर्च आधारित प्रोत्साहन योजना की जरूरत

नोवार्टिस इंडिया के भारत में अध्यक्ष अमिताभ दुबे ने कहा कि सरकार को अनुसंधान आधारित प्रोत्साहन योजनाओं पर बल देने की जरूरत है, क्योंकि इससे जीवनरक्षक दवाइयों की उलब्धता बेहतर होती है. वहीं, फोर्टिस हेल्थकेयर के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) आशुतोष रघुवंशी ने कहा कि पेशेवर चिकित्सा कर्मियों की कमी की समस्या को सुलझाने की जरूरत है. इसके लिए दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में काम करने के इच्छुक डॉक्टरों, नर्सों और तकनीकी कर्मियों को चिह्नित करने की जरूरत है.

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