मुंबई : रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एसएस मूंदडा ने मंगलवार को कहा कि कुछ बैंक खातों में न्यूनतम औसत राशि रखने और अन्य सुविधाएं देने के शुल्क के ‘बहाने’ ग्राहकाें को उनकी कुछ सेवाएं लेने से रोक रहे हैं. इसके साथ ही मूंदडा ने आधार और नेशनल पेमेंट्स काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया (एनपीसीआई) के विभिन्न प्लेटफार्म के जरिये बैंक खाता संख्या पोर्टेबिलिटी शुरू करने की वकालत की.
डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘‘बैंकाें को न्यूनतम औसत शेष या प्रमुख सेवाआें के लिए शुल्क लेने की स्वायत्तता है, लेकिन आम आदमी को बैंकिंग सुविधाआें से वंचित करने के लिए इनको बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. कुछ संस्थानाें में हमें ऐसा देखने को मिला है.’ ज्यादातर बैंकाें ने खाते में न्यूनतम तय राशि नहीं रखने पर शुल्क लेना शुरू किया है. साथ ही बैक बैंकिंग संबंधित सुविधाआें के लिए शुल्क ले रहे हैं.
उन्हाेंने भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआई) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा कि बैंकाें द्वारा चुनिंदा सेवाआें के लिए शुल्क लेने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन नियमों को इस तरीके से डिजाइन न किया जाये कि ग्राहक सुविधाआें से वंचित हो जाएं. मूंदडा ने कहा, ‘‘यदि बैंक प्रमुख सेवाएं दे रहे हैं, तो मुझे शुल्क लेने में कोई बुराई नजर नहीं आती, लेकिन ये शुल्क उचित होने चाहिए. ये ग्राहकाें को ‘भगाने’ के तरीके के नहीं होने चाहिए.’
डिप्टी गवर्नर मूंदड़ा ने कहा कि रिजर्व बैंक की चिंता सभी लोगाें को बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने तक सीमित है. केंद्रीय बैंक यह नहीं देख रहा कि ग्राहकों को ये सुविधाएं देने के लिए बैंक कितना शुल्क लगा रहे हैं. उन्हाेंने कहा कि पिछले दो साल में आधार नामांकन हुआ है, एनपीसीआई ने प्लेटफार्म बनाया है. आईएमपीएस जैसे बैंकिंग लेन-देन के लिए कई एेप शुरू किये गये हैं. ऐसे में खाता संख्या पोर्टेबिलिटी की भी संभावना बनती है. उन्हाेंने कहा कि एक बार खाता संख्या पोर्टेबिलिटी शुरू होने के बाद कुछ नहीं बोलने वाला ग्राहक बैंक से बात किये बिना दूसरे बैंक के पास चला जायेगा.
मूंदडा ने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में बैंक बीसीएसबीआई द्वारा डिजाइन आचार संहिता का पालन नहीं कर रहे हैंं. बीसीएसबीआई एक स्वतंत्र निकाय है, जो रिजर्व बैंक, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) का अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकाें ने स्थापित किया है.
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