नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज सवाल उठाया कि सहारा ने निवेशकों को बीस हजार करोड़ रुपए लौटाने के लिए अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ हजारों करोड़ रुपये के धन का लेन देन कैसे नकदी में किया. इससे पहले, सेबी ने आरोप लगाया था कि सहारा समूह ने ऐसे धन के लेन देन के बारे में कोई बैंक स्टेटमेन्ट पेश नहीं किया है. न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायामूर्ति जे एस खेहड़ की खंडपीठ ने सेबी से यह पता लगाने के लिये कहा है कि क्या कंपनी कानून और भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों के तहत इतनी बड़ी रकम का नकदी में लेन देन किया जा सकता है.
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि रिजर्व बैंक के ऐसे नियम हैं जिनके तहत दस लाख रुपये से अधिक का लेन देन चेक से ही करना होता है.’’ न्यायालय ने सेबी से कहा कि रिजर्व बैंक के नियमों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाये. इस मामले की आज सुनवाई शुरु होते ही सेबी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरिवन्द दातार ने कहा कि सहारा समूह ने इस धन के बारे में अपनी फर्मो के बैंक स्टेटमेन्ट नहीं दिये हैं. उन्होंने कहा कि सहारा का दावा है कि उसने अपने निवेशकों को धन लौटा दिया है और कंपनी ने यह लेन देन नकद किया है. उन्होंने कहा, ‘‘वे कहते हैं कि सब कुछ नकद किया गया और इस वजह से कोई बैंक स्टेटमेन्ट नहीं है. वह कहते हैं कि सहारा क्रेडिट सहकारी समिति ने सहारा इंडिया को मई-जून, 2012 में 16000 करोड़ रुपये नकद दिये थे.’’ सहारा समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने दलील दी कि उन्होंने न्यायालय में दाखिल सारे दस्तावेजों का अवलोकन नहीं कर सके हैं, इसलिए उन्हें सेबी के आरोपों का जवाब देने के लिये वक्त चाहिए. न्यायालय ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद इस प्रकरण को 20 फरवरी के लिये स्थगित कर दिया. शीर्ष अदालत ने इससे पहले सहारा समूह को 22885 करोड रुपए के स्नेत की जानकारी देने का निर्देश दिया था. सहारा ने दावा किया था कि उसने निवेशकों को यह रकम लौटा दी है.
न्यायालय ने इस धन के स्त्रोत की जानकारी देने से इंकार करने पर सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय और समूह को सख्त चेतावनी देते हुये स्पष्ट संदेश दिया था कि वह अपने निर्देशों का उल्लंघन करने के मामले में कार्रवाई करने के लिये ‘असहाय’ नहीं है. न्यायालय ने कहा था, ‘‘यह मत सोचिए कि न्यायालय असहाय है. हम सीबीआई और कंपनियों के पंजीयक से आपके खिलाफ जांच करने के लिये कह सकते हैं. हम असहाय नहीं है. यदि आप नहीं बतायेंगे तो हम धन के स्नेत का पता लगायेंगे.’’ न्यायालय ने 31 अगस्त, 2012 को सहारा समूह को निर्देश दिया था कि निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपए नवंबर के अंत तक लौटाये जायें. न्यायालय ने बाद में यह अवधि बढाते हुये इसकी कंपनियों को 5120 करोड रुपये तत्काल ओर दस हजार करोड रुपए जनवरी, 2013 के प्रथम सप्ताह में तथा शेष रकम का फरवरी के पहले सप्ताह में भुगतान करने का निर्देश दिया था.
सहारा समूह ने 5120 करोड रुपए का ड्राफ्ट पांच दिसंबर, 2012 को ही जमा कर दिया था लेकिन शेष राशि का भुगतान करने में आरोपी विफल रहे थे. न्यायालय ने सहारा समूह की दो कंपनियों, उनके प्रमोटर सुब्रत राय और निदेशक वंदना भार्गव, रवि शंकर दुबे तथा अशोक राय चौधरी को निवेशकों से एकत्र की गयी राशि सेबी को लौटाने का निर्देश दिया था. इसमें विफल रहने पर सेबी ने राय, सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्प लि और सहारा इंडिया हाउसिंग इंवेस्टमेन्ट कार्प लि तथा उनके निदेशकों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही के लिये मामला दायर किया था जो इस समय लंबित है.
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