मुंबई : बैंकों को बीमा ब्रोकिंग शुरु करने के आदेश पर बढ़ते विरोध को देखते हुये वित्त मंत्रालय ने मामले के उचित समाधान के लिये रिजर्व बैंक, इरडा और बैंकों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुये एक समिति गठित की है.भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के प्रमुख और पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के.आर. कामत ने वित्तीय सेवाओं के सचिव राजीव टकरु के साथ बैंकों के प्रतिनिधियों की बैठक के बाद यह जानकारी दी. उन्होंने कहा ‘‘इस मुद्दे पर सभी को स्वीकार्य हल तलाशने के लिये बैंकों, बीमा कंपनियों और रिजर्व बैंक तथा इरडा के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक छोटा समूह गठित करने का फैसला किया गया है. मेरा मानना है कि हम इस मुद्दे को बहुत जल्द सुलझा लेंगे.’’
कामत ने इस संबंध में पूछे गये सवाल पर कहा कि बीमा क्षेत्र में ब्रोकिंग का जो मुद्दा है यह कदम तो ठीक है यह ग्राहक केन्द्रित है लेकिन ‘‘आप इसे कैसे करना चाहते हैं यह मुद्दा हमारे सामने है. मुद्दा यह है कि किसी एक कंपनी का उत्पाद बेचने के स्थान पर बैंकों को ग्राहकों के समक्ष विकल्प रखने होंगे. एक तरफ जहां प्रत्येक मॉडल के अपने फायदे नुकसान हैं वहीं कोई एक मॉडल सबसे बेहतर तरीका नहीं हो सकता.’’ सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंकर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि टकरु ने जोर देते हुये कहा कि निजी क्षेत्र के बैंकों सहित सभी बैंकों को यह बात माननी होगी और किसी एक बीमा कंपनी के उत्पाद बेचने के बजाय सभी बीमा उत्पादों के लिये ब्रोकिंग कार्य करना होगा.
भारतीय स्टेट बैंक, पीएनबी, केनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंक सहित अन्य बैंकों के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में टकरु ने स्पष्ट तौर पर कहा ‘‘यदि निजी क्षेत्र के बैंकों को लगता है कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से अलग होंगे, मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह उनकी भूल है, एक बार नियामकीय निर्देश जारी होने के बाद सभी मौजूदा अनुबंध वाले दायित्व निरस्त हो जायेंगे.’’टकरु ने चेतावनी भरे लहजे में कहा ‘‘यदि निजी क्षेत्र के बैंक इसे लागू नहीं करते हैं तो नियामक को निर्देश जारी करना पड़ सकता है.’’वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बीमा ब्रोंकिंग मॉडल को अपनाने का निर्देश दिया था. इसमें ग्राहकों को बीमा उत्पादों के लिये काफी विकल्प मिलेंगे लेकिन बैंकों ने इसकी आलोचना करते हुये कहा कि इस मामले में निजी क्षेत्र के बैंकों को फायदा होगा क्योंकि सरकार का निर्देश उनपर लागू नहीं होता.
यह गौर करने की बात है कि सार्वजनिक क्षेत्र के ज्यादातर बड़े बैंकों और उनके समकक्ष निजी क्षेत्र के बैंकों के बीमा क्षेत्र में अपने संयुक्त उद्यम काम कर रहे हैं. इनमें बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां उनकी संयुक्त उद्यम भागीदार हैं. अपने भागीदार के बीमा उत्पाद बेचने का उनका दायित्व भी उनपर होता है. दूसरी कंपनियों के बीमा उत्पाद वह नहीं बेच सकते हैं, ऐसी भी समझ होती है. अपने बीमा भागीदार के साथ किये गये अनुबंध के दायित्वों को देखते हुये ही ज्यादातर बैंक वित्त मंत्रालय के आदेश के प्रति अनिच्छुक हैं. हालांकि, रिजर्व बैंक केवल उन्हीं बैंकों के बीमा ब्रोकिंग कारोबार में उतरने के पक्ष में है जिनकी वित्तीय स्थिति मजबूत है.
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