नयी दिल्ली : उद्योग जगत ने मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक द्वारा मुख्य नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि किये जाने पर हैरानी निराशा जतायी है. उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने कहा है कि रिजर्व बैंक को केवल मुद्रास्फीति को काबू में रखने पर ध्यान देने के बजाय अब निवेश और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने पर गौर करना चाहिये.
भारतीय उद्योग परिसंध (सीआइआइ) ने एक वक्तव्य में कहा है, भारत अब ऐसे चक्र में प्रवेश कर गया है, जहां ऊंची ब्याज दरों की वजह से कमजोर मांग की स्थिति बन गयी है. परिणामस्वरूप आर्थिक वृद्धि और निवेश कमजोर पड़ रहा है. इस स्थिति में आपूर्ति बाधाओं को बढ़ावा मिल रहा है. नतीजतन, मुद्रास्फीति दबाव बढ़ रहा है. यही वजह है कि रिजर्व बैंक को ब्याज दरें ऊंची रखनी पड़ रही हैं.
सीआईआई ने कहा है कि रिजर्व बैंक को अब अपना ध्यान मुद्रास्फीतिक मौद्रिक नीति के बजाय समन्वय बिठानेवाली नीति की तरफ देना चाहिए. रिजर्व बैंक के लिए यह उपयुक्त समय है, जब उसे पुराने उदाहरणों का ध्यान रखना चाहिए और मुद्रास्फीति से पहले आर्थिक वृद्धि पर ध्यान देना चाहिए. इस समय जब विशेष कर कीमतों में गिरावट का रुख है, विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति सामान्य दायरे में हैं और कृषि क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए महंगाई के बारे में धारणा भी ऊंची नहीं है.
एसोचैम अध्यक्ष राणा कपूर ने कहा है कि धीमी पड़ती आर्थिक वृद्धि की समस्या का निदान समग्र मांग में कमी लाकर नहीं, बल्कि आपूर्ति बढ़ाने के वास्ते निवेश गतिविधियों को बढ़ावा दिये जाने से हो सकता है. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक गवर्नर ने स्वयं इस सचाई को स्वीकार किया है कि आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कमजोर पड़ रही है. रिजर्व बैंक गवर्नर ने मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा में मंगलवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया.
केंद्रीय बैंक के इस कदम से कंपनियों के लिए बैंकों से कर्ज लेना और महंगा होगा और कर्ज वापसी किस्तें भी ऊंची होंगी. देश के एक अन्य प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत वृद्धि पर निराशा व्यक्त की है. पिछले दो साल के दौरान आर्थिक वृद्धि सुस्त पड़ी है, जबकि निवेश पर बुरा असर पड़ा है.
इससे समूचे उद्योग जगत में रोजगार के अवसरों में भी गिरावट के स्पष्ट संकेत दिख रहे हैं. फिक्की अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला ने कहा, हमें उम्मीद है कि आनेवाले महीनों में रिजर्व बैंक के नीतिगत निर्णय में आर्थिक वृद्धि और रोजगार पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा. हमें उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक के इस कदम के बाद बैंक ब्याज दरें नहीं बढ़ायेंगे.
निर्यातक संघों के महासंघ फियो के अध्यक्ष रफीक अहमद ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि ब्याज दरें बढ़ने से 26.10 लाख पंजीकृत सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों तथा कई असंगठित इकाइयों पर असर पड़ेगा. अहमद ने कहा कि रिकार्ड ऊंचाई छूने के एक माह बाद दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति घट कर तीन महीने के निम्न स्तर 9.87 प्रतिशत पर आ गयी, जबकि थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर में पांच माह के निम्न स्तर 6.16 प्रतिशत पर आ गयी. ऐसे में उद्योग जगत मौद्रिक नीति में यथास्थिति की उम्मीद लगाये हुए था.
* रेपो दर में वृद्धि मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने की प्रतिबद्धता
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने मंगलवार को कहा कि रेपो दर में 0.25% की वृद्धि रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता का संकेत देता है. रिजर्व बैंक ने मंगलवार को मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत ब्याज दर रेपो 0.25 प्रतिशत बढ़ा कर आठ प्रतिशत कर दिया. रंगराजन ने कहा, ह्ययह कीमत स्थिति के प्रति केंद्रीय बैंक की मजबूत प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करता है. यह मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य है. मुझे लगता है कि निर्णय निश्चित बदलावों को भी प्रतिबिंबित करता है, जिसकी वे निगरानी कर रहे हैं. अगर मुद्रास्फीति उम्मीद के अनुरूप दिशा में बढ़ती है, तो संभवत: नीतिगत दरों में वृद्धि में इस प्रकार का यह आखिरी कदम हो सकता है.
रंगराजन ने कहा, थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति (डब्ल्यूपीआइ) संतोषजनक स्तर पर है, लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के साथ ऐसा नहीं है. इसीलिए एक बार फिर ब्याज दर में वृद्धि यह बताता है कि अब ध्यान थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति से खुदरा मुद्रास्फीति की ओर चली गयी है.
* मुद्रास्फीति के लिए रेपो रेट बढ़ाना जरूरी : राजन
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बाजार को चकित करनेवाले एक और फैसले में मंगलवार को केंद्रीय बैंक की मुख्य नीतिगत ब्याज दर रेपो 0.25% बढ़ा कर आठ प्रतिशत कर दिया. इस कदम का उद्देश्य मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसना है. रेपो वह दर है, जिसपर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को एकाध दिन के लिए पैसा उधार देता है. इसके बढ़ने से बैंकों की धन की लागत बढ़ जायेगी और वे वाणिज्यिक और उपभोक्ता ऋणों पर ब्याज बढ़ा सकते हैं. राजन ने केंद्रीय बैंक की तीसरी तिमाही की मौद्रिक नीति की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा, ह्यरेपो दर में 25 अंक (0.25 प्रतिशत) बढ़ोतरी करने की आवश्यकता है, ताकि अर्थव्यवस्था को कम मुद्रास्फीति वाली राह पर रखा जा सके, जिसकी सिफारिश की जाती रही है.
रेपो दर में बढ़ोतरी के रिवर्स रेपो दर भी उसी तरह बढा कर 7 प्रतिशत और अल्पकालिक उधार की सीमांत अस्थायी सुविधा (एमएसएफ) और बैंक दर बढ़ा कर 9 प्रतिशत कर दी गयी है. बैंकों के पास नकदी की मात्रा को आरामदायक स्तर पर बनाये रखने के लिए आरबीआइ ने आरक्षित नकदी अनुपात को 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया. सीआरआर के तहत वाणिज्यिक बैंकों को अपनी जमाओं का निश्चित हिस्सा केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में रखना होता है. इस पर उन्हें ब्याज नहीं मिलता.
बाजार को उम्मीद की जा रही थी कि राजन अर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत ब्याज कम न करें, तो उसे पूर्ववत बनाये रखेंगे. उस लिहाज से मंगलवार का निर्णय अप्रत्याशित है. राजन इससे पहले भी ब्याज दर को लेकर इसी तरह के फैसले से बाजार को चौंका चुके हैं. तिमाही समीक्षा से पहले राजन ने मुद्रास्फीति को घातक रोग करार दिया था. रिजर्व बैंक ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत से नीचे रहेगी और 2014-15 में यह बढ़ कर औसतन 5.5 प्रतिशत हो जायेगी. राजन ने कहा कि उर्जित पटेल समिति के सुझाव के मुताबिक, अब मौद्रिक नीति की समीक्षा हर दो महीने पर होगी जो मुख्य वृहत्-आर्थिक और वित्तीय आंकड़ों की उपलब्धता के अनुकूल है.
* 2013-14 में पांच प्रतिशत रह सकती है वृद्धि दर
रिजर्व बैंक ने मंगलवार को कहा कि विनिर्माण क्षेत्र में तेजी के अभाव में वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत से नीचे आ सकती है, लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसके सुधर कर 5.5 प्रतिशत तक रहने की संभावना है. आरबीआइ ने मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा के साथ वृहत-आर्थिक एवं मौद्रिक विकास रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, लगातार दो महीने से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के मद्देनजर 2013-14 की दूसरी छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में तेजी की संभावना कम हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया कि आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत के औसत अनुमान से कुछ कम रहेगी. वित्त वर्ष 2013-14 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.6 % थी. आरबीआइ ने कहा कि वित्त वर्ष 2014-15 के लिए वृद्धि दर पांच से छह प्रतिशत के दायरे में रहेगी और इस तरह अगले वित्त वर्ष में वृद्धि दर औसतन 5.5% रहने का अनुमान है.
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