नयी दिल्ली : बिजली उत्पादक कंपनियों को राज्य विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा बकाये के भुगतान के मामले में महाराष्ट्र, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा समेत 10 राज्यों की स्थिति खराब है. सरकारी पोर्टल प्राप्ति से यह जानकारी मिली है. अन्य चार राज्य असम, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय और उत्तराखंड है. मंत्रालय ने बिजली उत्पादकों और वितरण कंपनियों के बीच विद्युत खरीद में भुगतान की पारदर्शिता लाने और विवाद की संभावना दूर करने के इरादे से आज प्राप्ति नाम से एप और वेब पोर्टल शुरू किया.
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बिजली उत्पादकों के बिलों में पारदर्शिता लाने के लिए बिजली खरीद में भुगतान की पुष्टि और विश्लेषण (पेमेंट रैटिफिकेशन एंड एनालिसिस इन पावर प्रोक्यूरमेंट फार ब्रिंगिंग ट्रांसपेरेंसी इन इनवायसिंग आफ जेनरेटर्स-प्राप्ति) एप और वेब पोर्टल बिजली उत्पादक कंपनियों के विभिन्न दीर्घकालीन बिजली खरीद समझौतों से संबद्ध बिल (इनवायस) और भुगतान के आंकड़े को प्रदर्शित करेगा. इससे मासिक आधार पर यह पता चलेगा कि बिजली खरीद को लेकर वितरण कंपनियों पर कितना बकाया है और उन्होंने कितना भुगतान किया है.
पोर्टल के अनुसार, इस साल फरवरी तक इन राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों द्वारा उत्पादक कंपनियों को भुगतान में कम से कम 240 दिनों या उससे अधिक की देरी की हैं. बिजली मंत्री आरके सिंह की आेर से बुधवार को शुरू पोर्टल के अनुसार, बिजली उत्पादक कंपनियों पर फरवरी, 2018 तक कुल 32,024 करोड़ रुपये बकाया है.
एप और पोर्टल जारी करते हुए सिंह ने कहा कि बिजली उत्पादक कंपनियों खासकर स्वतंत्र बिजली उत्पादकों का बकाया चिंता का कारण है और इस पहल से इसमें पारदर्शिता आयेगी. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भुगतान के बारे में आंकड़ा उत्पादक कंपनियों से लेने के बजाए इस बारे में आंकड़ा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी वितरण कंपनियों को दी जानी चाहिए. इससे इस पहल की दक्षता बढ़ेगी.
एक अधिकारी ने कहा कि पोर्टल और एप में यह बदलाव अगले एक सप्ताह में किया जायेगा. उन्होंने कहा कि आंकड़ा वास्तविक समय पर आधारित नहीं है, क्योंकि बिल (इनवायस) आने के बाद भुगतान में 30 दिन का अंतराल होता है. इसमें फिलहाल 61 बिजली वितरण कंपनियों तथा निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की 23 उत्पादक कंपनियों को शामिल किया गया है. फरवरी में सर्वाधिक 13,446 करोड़ रुपये का बकाया स्वतंत्र बिजली उत्पादकों का था. उसके बाद एनटीपीसी 8,454 तथा डीवीसी 2,275 करोड़ रुपये का स्थान है. एक अधिकारी ने कहा कि इसमें अभी भागीदारी स्वैच्छिक है और कुछ उत्पादक कंपनियों ने पिछले छह महीने के बिल और भुगतान के आंकड़े नहीं दिये हैं.
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