नयी दिल्ली : वित्त मंत्रालय पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती के पक्ष में नहीं है, बल्कि वह चाहता है कि ईंधन के ऊंचे दाम से आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए राज्यों को बिक्री कर अथवा मूल्यवर्धित कर (वैट) में कटौती करनी चाहिए. एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को यह बात कही. राजधानी दिल्ली में सोमवार को पेट्रोल के दाम पिछले 55 माह के उच्चस्तर 74.50 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गये. वहीं, डीजल के दाम रिकाॅर्ड 65.75 रुपये प्रति लीटर हो गया. इससे एक बार फिर उपभोक्ताओं पर बोझ कम करने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की मांग जोर पकड़ने लगी है.
इसे भी पढ़ेंः पेट्रोल-डीजल की कीमतें उपभोक्ताआें के उड़ा रहीं धुंआ, जानिये देश के चार महानगरों में कितनी है कीमतें…
वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि यदि सरकार राजकोषीय घाटा कम करने के अपने रास्ते पर अडिग रहती है, तो ऐसे में उत्पाद शुल्क में कटौती की सलाह देना उचित नहीं होगा. अधिकारी ने कहा कि उत्पाद शुल्क कटौती एक राजनीतिक मांग हो सकती है, लेकिन बजट में तय राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पाने के लिए इस तरह की कटौती करने की सलाह देना उचित नहीं होगा. सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) के 3.3 फीसदी पर रखने का लक्ष्य रखा है. पिछले वित्त वर्ष में यह 3.5 फीसदी रहा था.
हालांकि, अधिकारी ने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर उत्पाद शुल्क में कटौती के लिए नहीं कहा है. ईंधन के उत्पाद शुल्क में प्रत्येक एक रुपये की कटौती होने पर राजस्व में कुल मिलाकर 13,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. अधिकारी ने कहा कि वास्तव में राज्यों को पेट्रोल-डीजल पर वैट में कटौती करनी चाहिए.
केंद्र सरकार पेट्रोल पर 19.48 रुपये प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क लगाती है, जबकि डीजल पर वह 15.33 रुपये लीटर उत्पाद शुल्क वसूलती है. राज्यों में वैट की दर अलग अलग है. दिल्ली में पेट्रोल पर 15.84 रुपये प्रति लीटर वैट वसूला जाता है, जबकि डीजल पर 9.68 रुपये प्रति लीटर वैट लगता है.
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.