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जम्मू-कश्मीर में पैदा होगा केसर जैसा केला, अब नहीं करना पड़ेगा आयात

चट्टा (जम्मू) : जम्मू शहर से महज कुछ किलोमीटर दूर स्थित चट्टा के खेतों में केले की फसल लहलहा उठी है. यह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन्स बायोटेक्नोलॉजी द्वारा क्षेत्र में केला उगाने का प्रयोग सफल होने से संभव हुआ है. संस्थान का लक्ष्य जम्मू-कश्मीर में पहली बार केला का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करना था. […]

चट्टा (जम्मू) : जम्मू शहर से महज कुछ किलोमीटर दूर स्थित चट्टा के खेतों में केले की फसल लहलहा उठी है. यह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन्स बायोटेक्नोलॉजी द्वारा क्षेत्र में केला उगाने का प्रयोग सफल होने से संभव हुआ है. संस्थान का लक्ष्य जम्मू-कश्मीर में पहली बार केला का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करना था. राज्य पहले ही विभिन्न फलों का बड़ा उत्पादक है और देश के अन्य हिस्सों समेत विदेशों में भी इनका निर्यात करता है. हालांकि, यहां सालाना 200 करोड़ रुपये का केला आयात किया जाता है.

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संस्थान के निदेशक राम विश्वकर्मा ने कहा कि यह जम्मू-कश्मीर के लिए महत्वपूर्ण घटना है. हमने इस क्षेत्र के लिए बड़ा आर्थिक अवसर सृजित किया है. अगर हम अगले दो-तीन सालों में कुल 250 करोड़ रुपये के आयात में से 50 करोड़ रुपये का भी उत्पादन यहां कर सके, तो यह बड़ी बात होगी. इससे एक अर्थजगत तैयार होगा और रोजगार के अवसर सृजित होंगे. चट्टा के दो एकड़ क्षेत्र में अभी ग्रैंड नैने किस्म के दो हजार पौधे लहलहा रहे हैं. यह डॉ राहुल के कारण संभव हुआ है. उन्होंने जम्मू में केला का व्यावसायिक उत्पादन सुनिश्चित कराने के लिए काफी मेहनत की है.

उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए किसी सपने के सच होने जैसा है. कई चुनौतियों और बड़ी दिक्कतों को झेलकर हम इसमें सफल हुए हैं. इसने क्षेत्र के लिए नये आर्थिक अवसर खोले हैं. जम्मू-कश्मीर में केला का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने के लिए सीएसआईआर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन्स बायोटेक्नोलॉजी ने संयुक्त कार्यक्रम शुरू किया था. इसे इन दोनों संस्थानों के साथ ही अहमदाबाद स्थित कैडिला फार्माश्यूटिकल न मिलकर अंजाम दिया.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन्स बायोटेक्नोलॉजी के निदेशक ने यहां उपजे केला को पिछले ही सप्ताह पहली बार पेश किया था. उन्होंने कहा कि जम्मू में केला का उत्पादन देश के अन्य क्षेत्रों से बेहतर है और आकार एवं स्वाद में भी बेहतर है. उन्होंने कहा कि लोग लागत निकलने के बाद भी प्रति एकड़ 2.50 लाख से तीन लाख रुपये की आमदनी कर सकते हैं. उन्होंने आगे कहा कि जम्मू में काफी जमीनें उपलब्ध हैं. यदि लोग इसकी खेती करना शुरू करेंगे, तो न केवल आय प्राप्त होगी, बल्कि यहां केले की कीमत में भी कमी आयेगी, जो अभी देश के अन्य हिस्सों की तुलना में करीब दोगुना भाव पर बिक रहा है.

उन्होंने कहा कि हम वन विभाग के साथ मिलकर इसे जम्मू के शिवालिक श्रेणियों में सामाजिक वाणिकी के तौर पर विकसित करेंगे. इससे क्षेत्र में बंदरों का उत्पाद कम करने में भी मदद मिलेगी. विश्वकर्मा ने कहा कि इस किस्म के तैयार किये गये ये पौधे विशेषकर जम्मू क्षेत्र के अनुकूल हैं. उन्होंने कहा कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन्स बायोटेक्नोलॉजी का अगला लक्ष्य पॉलीहाउस तकनीक के जरिये कश्मीर क्षेत्र में केला का उत्पादन शुरू करना है. यह 2018 में किया जायेगा.

उल्लेखनीय है कि भारत केला का सबसे बड़ा उत्पादक है. देश में 1.64 लाख एकड़ से अधिक जमीन पर केले की खेती की जाती है. तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, असम, आंध्र प्रदेश और बिहार में केला के लगभग हर किस्म का उत्पादन किया जाता है.

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