सोचने मात्र से नियंत्रित हो सकेगा टैबलेट डिवाइस

बोस्टन : वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मस्तिष्क कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) विकसित किया है, जो लकवाग्रस्त लोगों को एक आम टैबलेट डिवाइस को संचालित करने में सक्षम बनायेगा. ऐसा माउस चलाने या क्लिक करने के बारे में सोचने मात्र से संभव हो सकेगा. टैबलेट और अन्य मोबाइल कंप्यूटिंग डिवाइस हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं, […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 22, 2018 1:25 PM

बोस्टन : वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मस्तिष्क कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) विकसित किया है, जो लकवाग्रस्त लोगों को एक आम टैबलेट डिवाइस को संचालित करने में सक्षम बनायेगा. ऐसा माउस चलाने या क्लिक करने के बारे में सोचने मात्र से संभव हो सकेगा. टैबलेट और अन्य मोबाइल कंप्यूटिंग डिवाइस हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल करना लकवाग्रस्त लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है.

तीन लोगों पर किये गये क्लिनिकल परीक्षणों में पाया गया कि टेट्राप्लेजिया (बीमारी या चोट लगने से होने वाला लकवा) से पीड़ित मरीज आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले टैबलेट के प्रोग्राम जैसे ई-मेल, चैट, गाने सुनने या वीडियो साझा करने वाले एप को अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल कर पाये. यह शोध पीएलओएस वन पत्रिका में 21 नवंबर को प्रकाशित हुआ है.

जिन तीन लोगों पर क्लिनिकल ट्रायल किया गया, उनमें से प्रत्येक ने ब्रेनगेट बीसीआइ का इस्तेमाल किया, जिसने मोटर कॉर्टेक्स में स्थापित एक छोटे से सेंसर की मदद से तंत्रिका तंत्र की सूक्ष्म गतिविधियों को भी रिकॉर्ड किया और बताया कि यह सिस्टम उसी तरह काम करता है, जैसे अन्य टैबलेट प्रोग्राम. इसमें ई-मेल, चैट, म्युजिक स्ट्रीमिंग और वीडियो शेयरिंग ऐप शामिल हैं.

क्लिनिकल ट्रायल में भाग ले रहे लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, शोध दल के सदस्यों और उनके साथी प्रतिभागियों के साथ मैसेज का आदान-प्रदान किया. उन्होंने वेब सर्फिंग की, मौसम की जानकारी ली और ऑनलाइन शॉपिंग भी की. एक प्रतिभागी, जो संगीतकार थे, ने डिजिटल पियानो इंटरफेस पर बीथोवेन के ‘ओडे टू जॉय’ के संगीत का एक टुकड़ा बजाया.

शोधपत्र के लेखक और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के न्यूरोसर्जन डॉ जेमी हेंडर्सन ने कहा कि कई सालों से न्यूरोसाइंस और न्यूरोइंजीनियरिंग की मदद से यह कोशिश की जा रही थी कि लकवाग्रस्त लोगों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के संचालन को सुलभ बनाने की दिशा में काम चल रहा था. इस अध्ययन के दौरान हमने यह पता लगाया कि एक अपंग व्यक्ति किस तरह से अपने उपकरणों का इस्तेमाल उसी तरह कर सकता है, जैसा वह बीमार पड़ने से पहले करता था. डॉ जेमी ने कहा कि यह देखकर बेहद प्रसन्नता हुई कि प्रतिभागियों ने खुद को अभिव्यक्त किया. उन्होंने वह गीत सुना, जो वे सुनना चाहते थे.

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