Shaurya Punj
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 18 सितंबर को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र मंदिर शहर ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करने के लिए तैयार हैं.
नर्मदा नदी के सुरम्य तट पर स्थित, ओंकारेश्वर इंदौर के हलचल भरे शहर से लगभग 80 किमी दूर है. इसे अद्वैत वेदांत दर्शन के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में देखा जा रहा है, जिसका प्रसिद्ध समर्थन आदि शंकराचार्य ने किया था.
मांधाता पर्वत पर इस भव्य प्रतिमा का निर्माण इस महत्वाकांक्षी विकास परियोजना के पहले चरण की शुरुआत का प्रतीक है.
आदि शंकराचार्य की यात्रा पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक महत्व से भरी हुई है. वह कम उम्र में ही त्याग के मार्ग पर चल पड़े. यह उन्हें ओंकारेश्वर ले गया, जहां उन्होंने अपने गुरु गोविंद भगवद्पाद के संरक्षण में चार साल बिताए और गहन शिक्षा प्राप्त की.
प्रभावशाली प्रतिमा के अलावा, ओंकारेश्वर अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को समृद्ध करने के लिए और भी विकास करने के लिए तैयार है. योजनाओं में अद्वैत लोक की स्थापना शामिल है, जो अद्वैत वेदांत की दार्शनिक परंपराओं को संरक्षित और प्रदर्शित करने के लिए समर्पित एक संग्रहालय है.
शंकराचार्य (जन्म आदि शंकराचार्य) एक भारतीय दार्शनिक थे जो लगभग 788-820 ई.पू. तक जीवित रहे. उन्हें भारतीय दर्शन के इतिहास में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक माना जाता है.
शंकराचार्य को अद्वैत वेदांत के अपने दर्शन के लिए जाना जाता है, जो सिखाता है कि एक ही वास्तविकता है, जो सभी प्रकटनों का अंतर्निहित आधार है.