Mithilesh Jha
फ्लाई ओवर का निर्माण करना हो या सड़कों का चौड़ीकरण. बीच में जहां पेड़ मिला, उसे काट डालने का चलन बन गया है.
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी बार-बार कहते हैं कि पेड़ को काटने की बजाय उसे शिफ्ट किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है.
रांची में सड़क चौड़ीकरण करना हो और बीच में पेड़ आ जाये, तो उसकी जड़ों तक की पिचिंग कर दी जाती है, जिससे उसकी जड़ों को पानी मिलना बंद हो जाता है. पेड़ सूख जाते हैं.
विशाल-विशाल पेड़ों की जड़ों को कंक्रीट और अलकतरा से बंद कर दिया जा रहा है. इससे पेड़ सांस नहीं ले पा रहे और उनका जीवन समय से पहले खत्म हो जाता है.
पेड़ों को काटने और उसकी जड़ों को बंद करने का यह सिलसिला जारी रहा, तो रांची में लोगों का सांस लेना भी एक दिन मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि ये पेड़ ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेंगे.
पेड़ की जड़ों के पास कंक्रीट या पेवर ब्लॉक लगा देने से पानी रिचार्ज नहीं होता है. इसका नुकसान पेड़ों को तो होता ही है, इंसानों को भी भुगतना पड़ता है. झारखंड में पेयजल संकट का एक कारण कंक्रीट भी है.
इससे पेड़ का विकास रुक जाता है और एक समय के बाद पेड़ सूखने लगता है. रांची के डीएफओ कहते हैं कि इसको रोकने का वन विभाग का कोई नियम नहीं है. नगर निगम चाहे तो इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी कर सकता है.
पेड़ की जड़ों में बैठने के लिए सीमेंट का चबूतरा बना दिया, क्योंकि यहां गर्मी से राहत मिलती है. लेकिन राहत देने वाले पेड़ों की सांस थम रही है, इसकी चिंता कोई नहीं कर रहा.