Prabhat Khabar Digital Desk
धार्मिक व आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार जब तक मोक्ष नहीं मिलता आत्माएं भटकती रहती हैं. इनकी शांति व शुद्धि के लिए गयाजी में पिंडदान करने के बाद पिंडदानी प्रेतशिला पर सतू उड़ाने आते हैं.
प्रेतशिला पहाड़ पर पैदल चढ़ने में असमर्थ लोग डोली के सहारे पहाड़ पर जाते हैं
इस प्रेतशिला पहाड़ पर जाने के लिए 676 सीढ़ियां बनी हुई हैं. इस पर्वत के शिखर पर प्रेतशिला वेदी है. कहा जाता है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले पूर्वजों का प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध व पिंडदान करने का विशेष महत्व है. इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण करते हैं. इससे पितरों को कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है.
पिंडदानी अपने पूर्वज को प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए यहां दान करते हैं.
पूर्वज को प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए पूजा करते पिंडदानी
पूर्वज को प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए पितर सत्तू उड़ाते. वे यहां कहते हैं उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो
पिंडदान के कर्मकांड से जुड़े लोगों का कहना है कि पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा रहता है. मध्य रात्रि में यहां प्रेत के भगवान आते हैं. यही कारण है कि यहां शाम छह बजे के बाद कोई नहीं रुकता है. कोई भी शाम छह बजे के बाद नहीं रुकता है. यहां तक कि पंडा जी भी इस पर्वत से उतर कर वापस घर चले जाते हैं.