इस रक्षाबंधन बहनें अपने भाई की कलाई पर गोबर, बीज और बांस से बनी इको फ्रेंडली राखियां (Raksha bandhan 2021) बांधेंगी. इसके पीछे का मकसद पर्यावरण प्रदूषण को रोकना और भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित करना है.
Raksha Bandhan 2021 | pti
इन दिनों बाजार में बिकनेवाली अधिकांश राखियों में प्लासटिक आदि का प्रयोग होता है. यह राखी हाथ से टूटने के बाद एकदम से नष्ट नहीं होती हैं. इनमें प्रयोग होने वाली सामग्री पर्यावरण को प्रदूषित करती है. लेकिन गाय के गोबर से बनी राखी नष्ट होने के बाद मिट्टी में घुलकर उसे उपजाऊ ही बनाती हैं.
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वहीं, मध्य प्रदेश के भिलाई शहर में महिलाओं द्वारा बनायी राखी अपने आप में अलग है. महिलाओं ने मांगलिक राखियों के साथ ही फलों और सब्जियों के बीज से राखियां तैयार की है.
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इनका मानना है कि रक्षाबंधन के बाद यदि कोई इन राखियों को मिट्टी में दबा दे या फिर यह राखी मिट्टी में गिर जाये, तो इससे पौधे उग आयेंगे. महिलाओं ने बताया कि इनमें छोटे-छोटे बीजों का उपयोग किया गया है, ताकि लोग इसे गमले या गार्डन में भी दबा दें तो वह राखी पौधे के रूप में बाहर आयेगी.
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दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश समेत कई बड़े राज्यों में इन राखियों के स्टाल लगाये गये हैं. राखियों की मांग में दिनोदिन वृद्धि हो रही है.
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हल्दी की गांठ को काट कर बनाया मोती, गोबर को सुखा कर बेस : राखी बनाने में महिलाएं गोबर, हल्दी, सुपारी, अक्षत और जौ का इस्तेमाल कर रही हैं. इसके अलावा, हल्दी की गांठ को काटकर उसे मोती का रूप दिया गया है. जबकि गोबर को सूखाकर राखी का बेस बनाया गया है.
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राखियों को तैयार करने में बीज के रूप में तुलसी व फूलों के बीजों के अलावा पपीता, सीताफल जैसे फलों और सब्जियों में बरबट्टी, गंवारफल्ली, लौकी के बीजों का इस्तेमाल हो रहा है.
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ये काफी छोटे बीज है जो राखियों के बीच सुंदर भी लगते हैं और आसानी से चिपक भी जाते हैं. राखी को यदि जमीन पर रख दिया जाये, तो इन बीजों से जल्द पौधे भी निकल आयेंगे. इन राखियों को बनाने में ग्वार गम पाउडर, मुल्तानी मिट्टी, पानी के रंग, तुलसी व फूलों के बीजों का उपयोग किया गया है.
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