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May 30, 2024
विद्वानेवोपदेष्टव्यो नाविद्वांस्तु कदाचन । वानरानुपदिश्याथ स्थानभ्रष्टा ययुः खगाः ॥ अर्थ - सलाह समझदार को देनी चाहिए ना कि किसी मुर्ख को. ध्यान रहे कि बंदरो को सलाह देने के कारण पक्षियों ने भी अपना घोंसला गवां दिया था।
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥ अर्थ - पढ़ने लिखने से शरूर आता है और शऊर से काबिलियत। काबिलियत से पैसे आने शुरू होते हैं और पैसों से धर्म और फिर सुख मिलता है।
सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥ अर्थ - सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहीं जा सकता; उसका मूल्य नहीं हो सकता, और उसका कभी नाश नहीं होता ।
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया । लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं ।। अर्थ - जिस मनुष्य की वाणी मीठी है, जिसका कार्य परिश्रम से युक्त है, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त होता है, उसका जीवन सफल है।
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:। यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।। अर्थ - विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए क्योंकि वो फल और छाया दोनो से युक्त होता है। यदि दुर्भाग्य से फल नहीं हैं तो छाया को भला कौन रोक सकता है।