जटाओं पर मां गंगा: कथाओं की मानें तो महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों को जीवन मरण के चक्र से मुक्त करने के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया. तप से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर उतरने को तैयार को गई. लेकिन उतरना पृथ्वी सहन नहीं कर पाती. जिसके बाद महाराजा भगीरथ द्वारा शिव जी की आराधना करने पर और भोले शंकर ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया.
जटाओं पर मां गंगा | Prabhat Khabar Graphics
डमरू: सृष्टि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तो उन्होंन अपनी वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि उत्पन्न किया. लेकिन इसमें न तो सुर था, न ही संगीत. तब सृष्टि के शुरू होने पर प्रसन्न शिव जी ने नृत्य आरंभ किया, उन्होंने 14 बार डमरू बजाया. जिसकी ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ.
डमरू | Prabhat Khabar Graphics
त्रिशूल: सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से प्रकट हुए शिव तो उनके साथ ही रजो, तमो और सत्व ये तीन गुण भी प्रकट हुए. यही तीनों गुण शिव जी के तीन शूल यानी त्रिशूल बने. जिनके बीच सांमजस्य बनाए रखने के लिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया.
त्रिशूल | Prabhat Khabar Graphics
तीसरे आंख: शिव जी के माथे तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. कई तस्वीरों में यह एक बड़े तिलक के समान भी दिखता है. कहते हैं कि उनके क्रोधित होने पर ही ये नेत्र खुलता है. जिससे सब कुछ भस्म हो सकता है. उनके तीसरे नेत्र का खुलना बुराईयों और अज्ञानता के अंत का प्रतिक है.
शिव जी के माथे तीसरा नेत्र | Prabhat Khabar Graphics
सिर पर चंद्रमा: चंद्रमा को मन का प्रतीक माना गया है. आपको बता दें कि ब्रह्मज्ञान मन के परे होता है, लेकिन उसे व्यक्त करने के लिए थोड़े मानस की आवश्यकता होती है. यही सिर चंद्रमा का भी प्रतीक होता है.
सिर पर चंद्रमा | Prabhat Khabar Graphics
गले में नाग: शिव जी के गले में सर्प सजगता का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि समाधि की अवस्था में जब आंखें बंद होती है, फिर भी व्यक्ति सोया नहीं होता बल्कि सजग होता है.
शिव जी के गले में सर्प | Prabhat Khabar Graphics